कविता : सुलगती क़लम
प्यार की दास्तां लिखूं
तो महकती है कलम।।
दर्द की कराहट लिखूं
तो सिसकती है कलम।।
सौन्दर्य की दिलकशी लिखूं
तो कसमसाती है कलम ।।
वीर, वीरांगनाओं, शहीदों
की वीरता, शहादत लिखूं
तो इतराती है कलम ।।
वहशीपन, दरिंदगी, आंतकवाद
की शर्मिंदगी लिखूं
तो सुलगती है कलम ।।
न करो टुकड़े दिलों को
मज़हबी तलवारों से
न जलाओ देश को
नफरत की चिंगारियों से
करती अर्ज ये कलम।।
हो सुकुन, अमन, हँसी
ही बस हर घर आंगन
आँख न हो कोई नम
करती दुआ ये कलम ।।
करती दुआ ये कलम।।
— मीनाक्षी सुकुमारन