कविता

उस पार

  (उस पार)

चलो उस पार…….

जहाँ न हो मजहबो की दिवार

बसाए एक ऐसी दुनियाँ जहाँ हो

प्यार ही प्यार

चलो उस पार……..

ये शहर, जहाँ करते है लोग प्रेमियों से नफरत

नहीं समझते, प्यार और जज्बातों का मोल

जिद की चाह में देते है, प्रेमी दिल को तोड़

चलो उस पार………

बंदिशे बहुत है इस शहर में, मतलबी है लोग

डूब जाती है प्यार की कश्ती मजहब की

 तेज धार में

चलो उस पार………

है शहर बड़ा बहुत, पर दिल उतना ही छोटा

निभाते नहीं है लोग यहाँ, सिद्दत से कोई रिस्ता

मन में रखते है द्वेष भरा होठो पे कड़बे बोल

चलो उस पार………

है शहर में कब्र बहुत

दफन हजारों पाक मुहब्बत यहाँ

उड़ाते है खिल्लियाँ इश्क करने वालों की

मनाते है जामे-जश्न यहाँ, उनके ही कब्र पर।

चलो उस पार………

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]