गीत : धन्य धन्य भारत की सेना
(Pok में भारतीय सेना की ऐतिहासिक कार्यवाही पर सेना और सरकार को बधाई देती मेरी नई कविता)
धन्य धन्य भारत की सेना,धन्य आज सरकार हुयी,
बलिदानी आँगन की तुलसी की इच्छा साकार हुयी,
हाँ,शहीद की बेवाओं के ज़ख्म बड़े ही गहरे थे,
लगता था माँ की चीखों पर दिल्ली वाले बहरे थे,
लेकिन भारत माँ ने सोया शौर्य जगाया गोदी में,
हिम्मत का सागर भर डाला अपने बेटे मोदी में,
बेटा बोला,बहुत हो गया,मौन नही अब धारेंगे,
तूने छिप कर मारा तुझको घर में घुस कर मारेंगे,
फेंक दिए गुलदस्ते अब की लेकर तीर कमान गए,
बलिदानों का बदला लेने सीमा पार जवान गए,
जहाँ मिला,जिस हाल मिला,आतंकी अड्डा फूंक दिया,
जितने थे दहशत के आका,सबके मुँह पर थूंक दिया,
छोटी सी बेटी शहीद की आज बहुत मुस्काई है,
अम्मा के सीने में सच में शीतलता भर आई है,
देख पाक तू,भारतवासी नही हारने वाले हैं
अट्ठारह के बदले में अड़तीस मारने वाले है,
काली रात अमावस जैसी,चमकी थी चिंगारी से,
चुन चुन कर आतंकी मारे हमने बारी बारी से,
कब तक और भला कितनी घुसपैठ करोगे मक्कारों,
ऐसे ही पागल कुत्ते की मौत मरोगे मक्कारों,
अब जिन्ना की जहरखुरानी नही चलेगी भारत में,
किसी तरह भी दाल तुम्हारी नही गलेगी भारत में,
हम “शोले”के संवादों में बात करेंगे सुन लेना,
तुम मारोगे एक तुम्हारे चार मरेंगे सुन लेना
जितनी भूल हुईं परदे पर,उन्हें सुधारा जाएगा,
“जय”की बिना शहादत के ये गब्बर मारा जाएगा,
रंग बसन्ती भारत माँ की आँखों में फिर छाया है,
लगता है दिल्ली में फिर से शेर धुरंधर आया है,
मोदी तुमने लाज बचा ली,कितने ही बलिदानों की,
देश बधाई देता तुमको,तुम ताकत अरमानों की,
कवि गौरव चौहान कहे,अब धरना धरने वालों से,
ठाठ वाट में रोज खाट पर चर्चा करने वालों से,
अंगारों को ठंडा करदे उसे पसीना कहते हैं,
इसको ही तो प्यारे छप्पन इंची सीना कहते हैं
— कवि गौरव चौहान