कविता

आतंक की पौध को काटेंगे

गौतम बुद्ध बोले सहन करो
हम उनकी बात को मानेंगे
उनकी बातों की गहराई
हम बहुत जतन से जांचेंगे
कुछ सहन करें, सब सहन करें
आतंक नहीं सह पाएंगे
आतंक की फसल न पनप सके
आतंक की पौध को काटेंगे.

 
बापू ने कहा हिंसा न करो
बापू की बात को मानेंगे
उनकी बातों की गहराई
हम बहुत जतन से जांचेंगे
हिंसा न करेंगे ठीक, मगर
हिंसा को सह नहीं पाएंगे
आतंक की फसल न पनप सके
आतंक की पौध को काटेंगे.

 

 

शास्त्री जी बोले ‘जय किसान’
हम उनकी बात को मानेंगे
उनकी बातों की गहराई
हम बहुत जतन से जांचेंगे
अन्न उगा सकेंगे कृषक मगर
आतंक उगा नहीं पाएंगे
आतंक की फसल न पनप सके
आतंक की पौध को काटेंगे.

 
सुधियों ने कहा न करो शिकवा
सुधियों की बात को मानेंगे
उनकी बातों की गहराई
हम बहुत जतन से जांचेंगे
शिकवा न करेंगे वृथा मगर
आतंक नहीं सह पाएंगे
आतंक की फसल न पनप सके
आतंक की पौध को काटेंगे.

 
गुरुजन कहते निज घर देखो
मत झांको औरों के घर में
गुरुजन की बात को मानेंगे
उनकी बातों की गहराई
हम बहुत जतन से जांचेंगे
झांकेंगे न ग़ैरों के घर में
कोई झांके सह नहीं पाएंगे
आतंक की फसल न पनप सके
आतंक की पौध को काटेंगे.

 
नस एक बदन की दुखने लगे
हम उसकी भी सुध लेते हैं
उन्नीस (18+1) नसें जब कट जाएं
हम मौन कहां रह पाएंगे?
सहने की भी हद होती है,
कब तक हम सहते जाएंगे?
सब सह लेंगे चुप रह करके
आतंक नहीं सह पाएंगे
आतंक की फसल न पनप सके
आतंक की पौध को काटेंगे.

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244