गीत : मंसूबे उन्मादी के
(हाफ़िज़ सईद द्वारा राष्ट्र्वादी समाचार चैनल ज़ी न्यूज़ को दी गयी धमकी पर ज़ी न्यूज़ का समर्थन करती मेरी नई कविता)
भड़क उठे हैं, आज देखिये मंसूबे उन्मादी के
भारत की सेना से गुर्दे काँप गए जेहादी के
जब से घातक फ़ोर्स गयी है, उस आतंकी झाडी में
मानो तब से आग लगी है उस हाफिज की दाढ़ी में
देश मनाता जश्न आज है दिल्ली मुंबई रांची में
मातम पसरा पिंडी, पेशावर लाहोर कराची में
खौफ हिन्द की सेना का हाफिज के अंदर आया है
इसीलिए ज़ी न्यूज़ सरीखे चैनल को धमकाया है
उसे पता है ये चैनल पूरे भारत की बोली है
उसे पता है ये चैनल, भारत भक्तों की टोली है
उसे पता है ये चैनल सच बात बोलने वाला है
भारत के सब गद्दारों की पोल खोलने वाला है
सुन हाफिज तू भारत की सेना से क्या टकराएगा
इक चैनल से डरा हुआ है, आगे क्या कर पायेगा
यह चैनल सुभाष चंद्रा के राष्ट्रवाद की छाया है
पाकिस्तानी फनकारों पर पाबन्दी का साया है
निडर सुधीर चौधरी जैसे पत्रकार का तेवर है
डीएनए में सच्चाई का ही मजबूत कलेवर है
यह चैनल भारत की पावन गरिमा का रखवाला है
देशभक्त के लिए फूल है, गद्दारों को भाला है
इस चैनल पर झूठ बोलने वालों का मुंह काला है
रोहित सरदाना के जैसा ताल ठोकने वाला है
राहुल सिन्हा काश्मीर की सच्चाई दिखलाते हैं
देख रिपोर्टिंग मालिक-गिलानी, शरमा के मर जाते है
षड्यंत्रों में फंसे देश की ताकत है, अभिलाषा है
यह चैनल ही पत्रकारिता की असली परिभाषा है
इसीलिए यह चैनल हाफिज की आँखों को खटका है
उस पर आफत बनकर ये ज़ी न्यूज़ गले में लटका है
डिजायनर कुछ पत्रकार ही उसको प्यारे लगते हैं
कुछ चैनल तो उसको अपने राजदुलारे लगते हैं
कुछ चैनल ऐसे हैं जिन पर देश आज शर्मिंदा है
शुक्र हमें है टीवी पर ज़ी न्यूज़ सदा से जिंदा है
आस यही है, झूठों को ये सबक सिखाता जाएगा
दुष्टों को ज़ी न्यूज़ सदा दर्पण दिखलाता जाएगा
— कवि गौरव चौहान