गीतिका : फिर वही नापाक हरकत
फिर वही नापाक हरकत फिर मिटी इंसानियत
नाम पर आखिर धरम के कब तलक ये वहशियत
किस धरम ने दी इजाजत कत्ल करने की कहो
कब खुदा ने ये कहा की तुम करो शैतानियत
आदमी वो हो नही सकते दरिन्दे है वो सब
नाम लेकर जो खुदा का कर रहे हैवानियत
आँख मे आँसू सभी की दिल जिगर में आग है
पूछता है हर कोई कब तक सहें नापाकियत
जागते तुम क्यूँ नही सब कौन सी गफलत में हो
क्यूँ समझते तुम नही जेहाद की ये असलियत
कुछ अगर गहरत बची है शेष तो फिर सोचिये
देश के सम्मान की कितनी बची है अहमियत
हो रहा तब्दील देखो कब्र में संसार ये
रहनुमाओं क्या यही देगी हमें जम्हूरियत
— सतीश बंसल