गीत/नवगीत

जयकार सुनाई नही देता

घनघोर घनन इस आंधी में तट पार दिखाई नहीं देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता
लूथड चीथड बिक जाते हैं अब सोने के दामों में
लाखों की साज सजावट में श्रृंगार दिखाई नही देता

नीलामी के दरवाजे पर भारत माँ का आँचल है
बेमानी के अम्बर पर अब काले धन का बादल है
और आतंकी सीना ताने घर में यूँ आ जाता है
जैसे भिखमंगा चोरी को अपना हक बतलाता है
कलियों का खिलना भी अब स्वीकार दिखाई नही देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता

दफ्तर में बेकार के बाबू टेबल के नीचे वाले
नेताजी ने भांति भांति के कुत्ते देखो हैं पाले
बीच चौराहे द्रोपदी के अब केश भी लोंचे जाते है
कलियों की देहों में सख्ती खीले टोंचे जाते हैं
प्रतिकारों में अबतो कोई प्रतिकार दिखाई नही देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता

और बाजारी इस समाज की बोलो कैसी कथा कहूँ
दर्द कहूँ या पीर कहूँ मैं कैसे इसकी व्यथा कहूँ
जूतों की मालाओं से जब गद्दारों का स्वागत होगा
उसदिन मेरा ह्रदय गर्व से निश्चित ही गद गद होगा
पर मक्कारों में सच्चा मक्कार दिखाई नही देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता

सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!