जयकार सुनाई नही देता
घनघोर घनन इस आंधी में तट पार दिखाई नहीं देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता
लूथड चीथड बिक जाते हैं अब सोने के दामों में
लाखों की साज सजावट में श्रृंगार दिखाई नही देता
नीलामी के दरवाजे पर भारत माँ का आँचल है
बेमानी के अम्बर पर अब काले धन का बादल है
और आतंकी सीना ताने घर में यूँ आ जाता है
जैसे भिखमंगा चोरी को अपना हक बतलाता है
कलियों का खिलना भी अब स्वीकार दिखाई नही देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता
दफ्तर में बेकार के बाबू टेबल के नीचे वाले
नेताजी ने भांति भांति के कुत्ते देखो हैं पाले
बीच चौराहे द्रोपदी के अब केश भी लोंचे जाते है
कलियों की देहों में सख्ती खीले टोंचे जाते हैं
प्रतिकारों में अबतो कोई प्रतिकार दिखाई नही देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता
और बाजारी इस समाज की बोलो कैसी कथा कहूँ
दर्द कहूँ या पीर कहूँ मैं कैसे इसकी व्यथा कहूँ
जूतों की मालाओं से जब गद्दारों का स्वागत होगा
उसदिन मेरा ह्रदय गर्व से निश्चित ही गद गद होगा
पर मक्कारों में सच्चा मक्कार दिखाई नही देता
भारत माता की जय में जयकार सुनाई नही देता
— सौरभ कुमार दुबे