“कुंडलिया”
महिमा माँ की पावनी, गई शरद ऋतु आय
नव रजनी नव शक्ति की, नव दुर्गा हरषाय
नव दुर्गा हरषाय, धरे नव रूप निराली
साविध पूजत लोग, सजाएँ अपनी थाली
कह गौतम् चितलाय, प्रदायक अणिमा गरिमा
करहु मनोरथ पूर्ण, आप की अनुपम महिमा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी