ग़ज़ल
हम गुज़री हुई बातों को दोहराया नहीं करते
बुरा जो वक्त आ जाए तो घबराया नहीं करते
खाद डालो भरोसे की अगर रिश्ते बचाने हैं
शजर जो सूख जाते हैं वो फिर साया नहीं करते
फकीरी में भी खुद्दारी का दामन हमने ना छोड़ा
ना हक हो जिस निवाले पर उसे खाया नहीं करते
हमें जो चाहिए बस उस खुदा से मांग लेते हैं
किसी के आगे अपना हाथ फैलाया नहीं करते
बुज़दिल हो के जीने से बेहतर लड़ के मरना है
मुसीबत हो बड़ी कितनी भी कतराया नहीं करते
— भरत मल्होत्रा