गीत/नवगीत

गीत : हमने तुम्हें सलमान समझा था

(सलमान खान द्वारा पाकिस्तानी कलाकारों के समर्थन पर जवाब देती मेरी नई कविता)

सलामत तुम रहो, हमने तुम्हें सलमान समझा था
तुम्हें इस देश का हमदर्द भाई जान समझा था

मगर तुम दहशती तंज़ीम का सामान ही निकले
अरे सलमान तुम फितरत से पाकिस्तान ही निकले

हमें जो ज़ख्म दे, उसकी तरफदारी नहीं होगी
किसी भी हाल में उस मुल्क से यारी नहीं होगी

जो पाकिस्तान भारत के ह्रदय को चोट देता हो
हमारे सैनिकों की गर्दनों को काट लेता हो

जो पाकिस्तान सरहद पर हमारे घर जलाता हो
गले मिलते ही जो फिर पीठ पर खंज़र चलाता हो

हम ऐसे मुल्क की झूठी खुशामद कर नहीं सकते
किसी भी शक्ल में रिश्तों का बोझा ढो नहीं सकते

किसी “आतिफ”या “राहत” के लिए ख़ाला नहीं भारत,
बिछा ले खाट कोई भी, धरमशाला नहीं भारत

हमारे मुल्क में खाते हैं, गाते हैं, कमाते हैं
हमारे देश की फ़िल्मों से शोहरत लूट जाते हैं

हैं कुछ फ़िल्मी महाजन जो इन्हें सिर पर बिठाते हैं
जो भारत के हुनरमंदों की किस्मत नोच खाते हैं

दलीलें खूब देते हैं कि ये फनकार हैं भाई
इन्हें दुश्मन से न जोड़ो, हमारे यार हैं भाई

मियां सलमान तेरे यार तो कुछ और ही निकले
ये खाकर खीर भारत की, निपट लाहौर ही निकले

ये भारत के जवानों की शहादत पर नहीं बोले
कभी कश्मीरियों की भी बगावत पर नहीं बोले

ये भारत के लिए आँखों में आंसू भर नहीं पाये
कभी हाफिज दरिंदे की बुराई कर नहीं पाये

तो फिर क्यों आपने सलमान पर्दा डाल रक्खा है
करांची के नचईयों को यहां क्यों पाल रक्खा है

कला के नाम पर इस देश को उल्लू बनाते हो
सरासर फायदा भारत की नरमी का उठाते हो

मगर ये देश अब टुकड़ा कोई फेंका नहीं लेगा
किसी भी ऐरे ग़ैरे का कोई ठेका नहीं लेगा

अगर है जंग तो फिर जंग के जज़्बात में रहिये
मियां सलमान तुम अपनी असल औकात में रहिये

सुनेंगे ज़िन्दगी भर हम कि वो बाजा नहीं हो तुम
फकत इक फ़िल्म में सुल्तान हो, राजा नहीं हो तुम

कलम गौरव की बोले और ये चौहान कहता है
वतन के दुश्मनों से पूरा हिंदुस्तान कहता है

यूं मुम्बई की किसी को भी टिकिट जारी नहीं होगी
है जब तक जंग सरहद पर कलाकारी नहीं होगी

— कवि गौरव चौहान