धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

यज्ञ से परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती, दरिद्रता दूर होती है, आयु में वृद्धि सहित यज्ञकर्ता को परमात्मा हर क्षण सम्भालता है: डा. जयेन्द्र आचार्य

ओ३म्

वैदिक साधन आश्रम में शरदुत्सव का प्रथम दिवस-

 

 

वैदिक साधन आश्रम तपोवन देहरादून आर्यजगत का वैदिक विधि से साधना का प्रमुख केन्द्र है। यहां आशीष जी दर्शनाचार्य निवास करते हैं और साधकों की समस्याओं व शंकाओं का समाधान करते हैं। आश्रम वर्ष में दो बार ग्रीष्मोत्सव तथा शरदुत्सव का आयोजन करता है। उत्सव के प्रथम दिवस आज 5 अक्तूतबर 2016 को प्रातः 5 बजे से योग एवं ध्यान साधना का क्रियात्मक प्रशिक्षण साधकों एवं श्रद्धालुओं को दिया गया। इसके बाद ऋग्वेद पारायण यज्ञ हुआ जिसे चार यज्ञ वेदियों पर अनेक यजमानों ने मिलकर सम्पन्न किया। वेद मंत्रोच्चार गुरुकुल पौंधा देहरादून के दो ब्रह्मचारियों श्री ओम्प्रकाश और सुखदेव जी ने किया। यज्ञ के ब्रह्मा पद पर आज आर्यजगत के विद्वान डा. जयेन्द्र आचार्य, नौएडा विद्यमान रहे। यज्ञ के बाद सभी यजमानों को वैदिक रीति से आशीर्वाद दिया गया। इसके बाद तपोवन आश्रम के प्रांगण में सभी स्त्री पुरुष व तपोवन विद्या निकेतन विद्यालय के बच्चों ने पंक्तिबद्ध खड़े होकर आश्रम के संरक्षक स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती द्वारा आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा व न्यास के सदस्यों के सहयोग से ओ३म् घ्वज का आरोहण किया। गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने ध्वजारोहण एवं राष्ट्रीय प्रार्थना के वेदमंत्र व उसके हिन्दी भावानुवाद का गायन भी किया। तपोवन विद्या निकेतन की बालिकाओं ने ध्वज गीत जयति ओ३म् ध्वज व्योम विहारी विश्व प्रेम प्रतिमा अति प्यारी’ का सामूहिक गायन किया। इस अवसर पर स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती जी द्वारा अपना संक्षिप्त उद्बोधन भी प्रदान किया गया। स्वामी जी ने कहा कि आप तपोवन में पधारें हैं यह तपोवन आश्रम का सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि संसार की प्रत्येक वस्तु परमात्मा का ध्वज है वा उस परमात्मा की सूचक है। हम सभी परमात्मा के बनायें हुए प्राणी हैं। हम सबको परमात्मा के बनायें हुए नियमों पर चलना चाहिये। आश्रम के भी अपने कुछ नियम हैं। मुझे आशा है कि आप यहां रहते हुए आश्रम के नियमों का पालन करंेगे। इसके लिए मैं आपको आशीर्वाद देता हूं। आप सभी स्वस्थ, सुखी व समृद्ध हों। स्वामी दिव्यानन्द जी के बाद आश्रम के मंत्री श्री प्रेमप्रकाश शर्मा ने आश्रम में आये धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं को कहा कि आप आश्रम को अपना निजी आश्रम समझ कर सभी प्रकार का व्यवहार करें। उन्होंने आश्रम के अधूरे कार्यो को पूर्ण करने के लिए मुक्त हस्त से दान देने की भी अपील की। कार्यक्रम संचालक शैलेश मुनि ने कहा कि हम व आप यहां साधना करने आये हैं। आप यहां तप करें तो इससे निश्चित ही उन्नति होगी।

 

ध्वाजारोहण के बाद सभी धर्म प्रेमियों ने प्रातःराश किया। 10 बजे आरम्भ हुए सत्र में प्रथम आश्रम में पहली बार पधारे आर्य भजनोपदेशक श्री कुलदीप आर्य ने भजनों की प्रस्तुति की। उन्होंने पहला भजन दाता तेरे सुमिरन का वरदान जो मिल जाये, मुरझाई कलि दिल की एक आन में खिल जाये।।’ प्रस्तुत किया। आपका दूसरा भजन था “जब उस प्रभु का ये दिल जीवन दीवाना होता है, ये कोई शुभ कर्म पुराना होता है।। आने को तो मौत वक्त पर आती है लेकिन पहले कोई बहाना होता है।।” आपके द्वारा प्रस्तुत तीसरे भजन की आरम्भिक पंक्तियां थी तेरे दर को छोड़ कर किस दर जांऊ मैं, सुनता मेरी कौन है किसे सुनाऊं मैं।।’ इसके अतिरिक्त आपने राम चरित मानस की कुछ चैपाईयों को बहुत ही ताल व लय के साथ मधुर स्वरों में गाकर सुनाया जिससे सभी श्रोता भक्ति भाव से सराबोर हो गये। श्री कुलदीप आर्य के बाद कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, देहरादून की छात्राओं ने एक भजन प्रस्तुत किया  जिसक बोल थे भारत में जब जड़ पूजा का घोर अन्धेरा छाया था। टंकारा का देव दयानन्द तब सूरज बनकर आया था।।’

 

आश्रम के उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में नौएडा गुरुकुल से पधारे डा. सत्येन्द्र आचार्य ने अपने प्रवचन के आरम्भ में कहा हे प्रभु हम तुम्हारे सदा दास हैं। भक्ति अमृत को पीने की ही प्यास है। हम तुम्हें छोड़ कर और चाहंे किसे, पत्ते पत्ते में तेरा ही होता आभास है। मैं भटकता रहा झूठी आशा लिए और जलाता रहा आरती के दिए। पर मुझे क्या पता था मेरे देवता, तू तो आनन्दघन मेरे दिल में विराजमान् है।’ अपने प्रवचन के आरम्भ में आपने गीता के आधार पर कहा कि मनुष्य को यज्ञ, तप और दान को करना चाहिये, इन्हें कभी छोड़ना नही चाहिये। आपने वेदों का भाष्य करने की योग्यता विषयक ऋषि दयानन्द के विचारों को भी प्रस्तुत किया। आपने कहा कि परमात्मा ने हमें हमारी आवश्यकतानुसार सभी  पौष्टिक पदार्थ दिये हैं। आज हमारी जिन्दगी जितनी आसान है, इससे पहले कभी नहीं थी। विज्ञान का परिष्कार बहुत हुआ है। उन्होंने कहा कि परमात्मा के बनाये सिस्टम के बिना संसार का कोई मनुष्य चावल का एक दाना भी नहीं बना सकता। परमात्मा कृपालु है। उसकी कृपा से ही  हमें अन्न आदि पदार्थ मिलते हैं। न केवल मनुष्यों के लिए अपितु सभी पशु पक्षियों के लिए भी वह खाद्यान्न उत्पन्न करता है। परमात्मा हमारा रक्षक भी है। आपत्ति में जहां कोई हमारी रक्षा नहीं कर सकता, वहां भी परमात्मा हमारी रक्षा करता है। इसका उदाहरण उन्होंने गुरुकुल में अपने साथ घटी एक दुर्घटना को प्रस्तुत कर कहा जिसमें किसी की जान बच नही सकती परन्तु आप उस गम्भीर दुर्घटना में ईश्वर की कृपा से सकुशल बच गये। उन्होंने कहा कि जहां किसी का हाथ नहीं पहुंचता वहां ईश्वर का हमारी सहायता के लिए हाथ पहुंचता है। वह बोले जाको राखे साईयां मार सके कोय, बाल बांका कर सके जो जग बैरी होय।’ परमात्मा रक्षक होने के साथ हमारे सौभाग्य को बढ़ाने वाला भी है और सबका पोषण करता है।

 

विद्वान वक्ता डा. जयेन्द्र आचार्य ने कहा कि परमात्मा हमारी रक्षा तब करेगा जब हम प्रतिदन अग्निहोत्र-यज्ञ करेंगे। जो व्यक्ति जीवन में यज्ञ का त्याग कर देता है परमात्मा भी उसे एक दिन छोड़ देता है। इसे विद्वान वक्ता ने महर्षि दयानन्द का विश्वसनीय वाक्य बताया। जो प्रतिदिन यज्ञ करता है उस पर परमात्मा की कृपा बरसती है। जो यज्ञ करता है परमात्मा उसे अपना लेता है। उन्होंने धर्मप्रेमी सभी श्रोताओं को कहा कि आप अपनी आत्मा व चेतना को कमजोर न होने दो। उन्होंने कहा कि लोग परमात्मा से मिलना चाहते हैं। इसके लिए वह अनेक खतरे उठाते हैं। भारी व्यय भी करते हैं। दान करते हैं कि परमात्मा की कृपा प्राप्त हो जाये। गोवर्धन स्थान पर जाकर 12 से 14 किमी. तक की परिक्रमा करते हैं। उनकी भावना होती है कि किसी न किसी प्रकार भगवान की कृपा उन्हें प्राप्त हो जाये। विद्वान वक्ता ने कहा कि हम कभी न कभी अपने घरों में परमात्मा को बुलाना चाहते हैं। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए अपने जीवन को खतरों में भी डालते हैं। इसका उन्होंने एक उदाहरण सुनाते हुए कहा कि उनके एक परिचित व्यक्ति अमरनाथ यात्रा से लौटे तो पूछने पर उन्होंने अपने साथ बीती घटना का उल्लेख कर बताया कि वह बाबा के नहीं मृत्यु के दर्शन करके आयें हैं। मार्ग में आये बर्फानी तूफान में वह मरने से बाल बाल बचे हैं। विद्वान वक्ता ने कहा कि परमात्मा की कृपा हमें यज्ञ करने से मिल जाती है, इधर उधर भटकने से परमात्मा की कृपा प्राप्त नहीं होती। वैदिक साधन आश्रम तपोवन के प्रधान श्री दर्शन कुमार अग्निहोत्री जी का उल्लेख कर उन्होंने बताया कि वह हर समय यज्ञों व आर्यसमाज के कार्यों में लगे रहते हैं। अग्निहोत्री जी ने जीवन में 100 से अधिक बार वेद पारायण यज्ञों को सम्पन्न कराया है। (हमारी दृष्टि मे शायद वर्तमान में यह एक विश्व रिकार्ड हो-मनमोहन आर्य)। वक्ता महोदय ने उनसे पूछा की आपका बिजीनेस कैसे चलता है? उन्होंने बताया कि वह तो यज्ञ करते हैं। उनका काम तो परमात्मा करता है। अब उनके पास धन पहले से अधिक है। (नोट-आज हमें श्री अग्निहोत्री जी के निमंत्रण पर उनकी तपोवन आश्रम की कुटिया में प्रातराश करने का अवसर मिला। वहां डा. जयेन्द्र आचार्य, स्वामी दिव्यानन्द जी और अनेक विद्वान उपस्थित थे। वस्तुतः श्री अग्निहोत्री हमें अनेक दिव्य गुणों से युक्त देव कोटि के मनुष्य लगते हैं। उनमें विनम्रता, सरलता और दान का गुण विशेष हंै-मनमोहन)।

 

सरल, सरस एवं प्रभावशाली वाणी के धनी विद्वान वक्ता डा. जयेन्द्र आचार्य ने कहा कि स्वामी श्रद्धानन्द जी संन्यासी होकर भी प्रति दिन यज्ञ करते थे। एक बार किसी ने उनकी तुलना स्वामी दयानन्द जी से कर दी तो स्वामी जी ने उसका विरोध करते हुए उससे कहा कि मेरी तुलना कभी स्वामी दयानंद जी से मत करना क्योंकि वह मेरे गुरु हैं और समाधि प्राप्त योगी हैं। उन्होंने कहा कि मैं तो ऋषि दयानन्द के चरणों की कृपा से खिला हुआ एक छोटा सा फूल हूं। स्वामी श्रद्धानन्द जी ने यह भी कहा कि मेरी यज्ञ में श्रद्धा है। जब तक श्वांस चलती है तब तक मेरे जीवन में यज्ञ चलता रहेगा। आगे यज्ञ के महत्व के विषय में वक्ता महोदय ने कहा कि यज्ञ करने से वायु शुद्ध होती है तो यह भी कोई छोटी बात नहीं है। वायु को शुद्ध करने वाला पृथिवी पर यज्ञ करने से श्रेष्ठ तरीका और कोई नहीं है और न अभी तक इसके लिए कोई वैज्ञानिक खोज ही की जा सकी है। उन्होेंने कहा कि स्वामी दयानन्द के अनुसार परम पिता परमात्मा का ध्यान सबको प्रतिदिन सुबह उठकर हाथ जोड़कर करना चाहिये। परमात्मा की यज्ञ रूपी सामथ्र्य से ही चारों वेदों की उत्पत्ति भी हुई है। यदि आप परमात्मा की कृपा चाहते हैं तो प्रतिदिन यज्ञ करने का संकल्प करें। जो यज्ञ को अपनाता है परमात्मा भी उसी को अपनाता है। विद्वान वक्ता ने स्वामी जी के भक्त व मित्र सैयद अहमद खां का एक प्रसंग भी सुनाया जिसमें स्वामी जी ने दाल में छौंक का उदाहरण देकर कहा था कि थोड़ी मात्रा में गोधृत से यज्ञ करने से वृहत वायुमण्डल शुद्ध होता है। डा. जयेन्द्र जी ने कहा कि यज्ञ से परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती। यज्ञ से परिवार की दरिद्रता दूर होती है। यजमान की आयु में वृद्धि होती है। यज्ञ करने वाले मनुष्य को परमात्मा हर क्षण सम्भालता है। कार्यक्रम के संचालक श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने श्री सत्येन्द्र आचार्य जी का मधुर व प्रभावशाली प्रवचन के लिए धन्यवाद किया और शान्तिपाठ कराकर आयोजन के समापन की घोषणा की।

 

अपरान्ह का कार्यक्रम 3.30 बजे ऋग्वेद पारायण यज्ञ से आरम्भ हुआ। यज्ञ के मध्य में यज्ञ के ब्रह्मा डा. जयेन्द्र आचार्य ने मन्त्रों व यज्ञ विषयक अनेक बातों पर प्रकाश डाला। यज्ञ के पश्चात श्री कुलदीप आर्य के मनोरम व मधुर भजन हुए। रात्रि को भी भजन एवं प्रवचन का आयोजन सम्पन्न हुआ जिसका समाचार हम अलग से तैयार कर कुछ समय के अन्दर प्रस्तुत करेंगे।

 

मनमोहन कुमार आर्य