गीतिका/ग़ज़ल

…….रखा है

संग कुछ शक्सों ने ही हाथों में उठा रखा है
बेवकूफों कश्मीर का क्या हाल बना रखा है

तुम्हें तो शर्मिंदगी न थी अपनी करतूतों से
फिर किसलिए कपड़े से मुंह को छुपा रखा है

सुख दुःख में काम आये हम ही हिन्दुस्तानी
फिर क्यूँ पाकिस्तान को ही बाप बना रखा है

तेरे नापाक इरादों से तो पूरे होने से रहे वो
जो ख़्वाब आज़ादी का आँखों में सजा रखा है

नफरतों की आंच पे यूँ कभी रिश्ते पकते नहीं
नवजवानों की तरबियत बदहाल बना रखा है

खैरात पे टिकी तेरे खाने पहनने की ख्वाइशे
फिर क्यूँ दुनिया को नबाबी शान दिखा रखा है

सरहदों को भूल कर हम तो गए गले मिलने
क्या पता था आस्तीन में खंजर छुपा रखा है

@ राज रंजन
(संग : पत्थर, तरबियत : संस्कार)

राज रंजन

भारतीय स्टेट बैंक में सेवारत