संस्मरण

मेरी कहानी 171

वैली ऑफ दी किंग्ज देख कर हम कोच में बैठ गए। भूख सब को लगी हुई थी। अब कोच यहाँ से निकल कर एक और सड़क पर जाने लगी। बहुत देर नहीं लगी जब हम एक ऐसी दुकानों के पास आ गए जो भारतीय दुकानें जैसी ही थीं, जिन के दरवाजों पर बड़े बड़े बोर्ड़ लगे हुए थे, जिन पर इंग्लिश और इजिप्शियन भाषा में ऐडवर्टाइज़मेंट दीख रही थी। एक छोटी सी दूकान के सामने ड्राइवर ने कोच खड़ी कर दी। सब कोच में से निकल कर इस दूकान में जाने लगे। दुकान तो अभी आगे थी लेकिन भीतर जाने से पहले हम ने देखा कुछ कारीगर पत्थरों को तराश कर तरह तरह की मूर्तियां बना रहे थे। काम करते करते इंग्लिश में वोह हंसी मज़ाक भरी बातें भी कर रहे थे, जिस को सुन कर सबी हंस रहे थे। यह मूर्तियां वोह प्रसिद्ध फैरो, पिरामिड और पैरामिड्ज़ के सामने कुछ दूरी पर एक शेर की बना रहे थे जिस को स्फिंक्स बोलते हैं। जल्दी ही हम समझ गए कि यह उन की ऐडवर्टाइज़मेंट ही थी, कुछ ना कुछ बेचने की। ज़्यादा से ज़्यादा पंदरां मिंट ही गुज़ार कर हम एक दरवाज़े से पिछली ओर जाने लगे तो देखा वहां बहुत से पत्थर पड़े हुए थे जो मूर्तियां बनाने के लिए स्टॉक ही था।
कोई खास दिलचस्प बात हम को नहीं दिखाई दी लेकिन यों ही हम एक और दरवाज़े से एक बहुत बड़े कमरे में दाखल हुए तो देख कर ही आँखें हैरान रह गईं। सारे कमरे में शैल्फों पर इतनी मूर्तियां थीं और इतनी सुन्दर कि बस देखते ही रहें। सभी शो पीस इजिप्शियन इतिहास के बारे में ही थे । जो बाहर हम पत्थर देख कर आये थे, वोह तो बिलकुल मामूली ही था लेकिन यहां तो इतने रंगों का था कि देख देख कर सभी हैरान हो रहे थे। दूकान का मालक जो एक तीस पैंतीस वर्ष का लड़का था, वोह इन शो पीसज़ के बारे में बता रहा था, कि इन को बनाने में कितना वक्त लगता था। जब गोरे उन की कीमत पूछते तो सुन कर ही चुप हो जाते क्योंकि एक छोटी सी मूर्ति की कीमत हज़ार हज़ार इजिप्शियन पाउंड होती। बड़ी मूर्तियों की कीमत तो बहुत ज़्यादा होती। सारी दूकान घुमते घूमते सबी काउंटर के नज़दीक आ कर खड़े हो गए। अब वोह दुकानदार काउंटर के पीछे आ गया था और कुछ बताने लगा, सभी उत्सुकता से उसे देखने लगे। एक बाल्टी में से उस ने हरी हरी, कोई आधा इंच मोटी और दो फ़ीट लंबी सरकंडे जैसी टहनी निकाली और फिर उस ने इस का इतिहास बताना शुरू कर दिया।
” यह टहनी उतनी ही पुरानी है, जितना इजिप्ट का इतिहास पुराना है, होगी तो यह पहले भी लेकिन इस टहनी का इजिप्ट के इतिहास में महत्व बहुत है क्योंकि इस से पेपर बनाया जाता था जिस को पपायर्स बोलते हैं”, फिर उस ने चाक़ू से इस सरकंडे जैसी टहनी को सेंटर में से चीर दिया, जब इस के दो हिस्से हो गए तो उस ने इन दो हिस्सों को काऊंटर पर पास पास रख दिया। इसी तरह उस ने और भी कई टैहनीआं चीर कर,सभी को एक दूसरे के साथ जोड़ दिया, जिस से एक चटाई जैसी शक्ल बन गई। अब उस ने एक बड़ा सा लकड़ी का टुकड़ा उस चटाई पर रख दिया। अब उस ने बताना शुरू कर दिया कि पुराने फैरो के ज़माने में पेपर कैसे बनाते थे। उस ने बताया कि इसी तरह बड़ी बड़ी चटाइयां सी बना कर उन पर भारी पत्थर रख दिए जाते थे। तकरीबन दो महीने इसी तरह पत्थर के नीचे रहने देते थे। दो महीने बाद इस का रंग बदलने लगता था और यह टैहणिआँ आपस में जुड़ कर पेपर बन जाता था । अगर उन को सिर्फ चिट्टे रंग की जरुरत होती तो उन को पता होता था कि कब इस को पत्थर के नीचे से निकालना था। अगर कुछ गहरे रंग की जरुरत होती थी तो इस पत्थर को कुछ समय और रहने देते थे, जिस से रंग कुछ ब्राऊन हो जाता था। यह पेपर कई कई सौ साल तक रह सकता था। फिर उस ने एक बना हुआ पेपर दिखाया जो सभी ने हाथ से पकड़ कर देखा और यह कुछ मोटा, बहुत साफ़ और सख्त दिखाई देता था।
अब उस ने इसी पेपर पर बनी पेंटिंग्ज दिखानी शुरू कर दी। जो राजे महाराजे वोह बता रहा था, उन के नाम हमें याद रह ही नहीं सकते थे। उस समय के उन के देवते ही इतने थे कि गिण ही नहीं सकते। फिर भी मुझे सिर्फ रामेसज़ फर्स्ट सैकंड और थर्ड ही याद रह पाया या तूतनखामन,ऐमन हौतिप, रानी नैफर्तिती जो बहुत क्रुअल रानी समझी जाती थी। इन पेंटिंग्ज का पेपर वोह ही था जो उस दुकानदार ने दिखाया था। यह पेपर बाहर से बिलकुल कट नहीं किया गया था, बिलकुल ही नैचुरल लगता था और इन पर बनी पेंटिंग्ज बहुत ही सुन्दर बनी हुई थीं। जो कीमत उस ने बताई, वोह काफी ज़्यादा थी लेकिन फिर भी सभी ने एक दो या तीन खरीद ली और हम ने भी एक एक खरीद ली जो अभी तक मेरे घर की एक दीवार पर लगी हुई है और किसी रानी की है, जिस का मुझे कोई पता नहीं कि वोह कौन थी। कुछ लोगों ने कुछ मूर्तियां भी खरीदीं और हम वहां से बाहर आ गए और कोच में बैठ गए। कोच हमारी क्रूज़ बोट की तरफ चल पडी।
बोट में जब पहुंचे तो खानों की महक आ रही थी। जल्दी जल्दी डाइनिंग हाल में आ कर अपनी अपनी सीटों पर विराजमान हो गए। पांच मिंट में ही सूप हमारी मेज़ों पर था। सूप ख़तम होते ही मेन कोर्स बड़ी बड़ी प्लेटों में हमारे आगे रख दिया गया। मेन कोर्स देख कर ही मज़ा आ गया, जिस में मीट वैजिटेबल्ज़ और मैश पटैटो थे, जिन के ऊपर तरह तरह के स्पाइसज़ दीख रहे थे। जी भर के हम ने खाया और इस के बाद जल्दी ही स्वीट डिश आ गई, जो हम मज़े से खाने लगे और बातें भी करने लगे। मज़े की बात यह थी कि जितना हम खाते थे, उतना ही अनीता और उस की माँ खा जाती थी और बाहर आ कर जसवंत हंस पड़ता और कहता, ” मामा ! पता नहीं यह दोनों इतना कैसे खा जाती हैं, जब कि शरीर से भी यह बहुत हलकी हैं “, मुझे तो खुद इस बात की हैरानी है, मैं कहता। बातें करते करते हम उठने लगे, मैं और जसवंत ऊपर डैक पर आ कर स्विमिंग पूल के पास आ कर बड़ी बड़ी डैक चेअऱज़ पर लेट गये। कुछ गोरे गोरीआं नहाने लगे। यह कांड लिखते लिखते मेरे दिमाग में एक विचार आया कि किया यह क्रूज़ बोट इंटरनेट पे होगी ?, तो मुझे क्रूज़ बोट का नाम तो याद ही था, इस लिए मैंने यूटिऊब पे nile commodore walk through 1 लिखा तो सारी बोट मेरे सामने ऐसे दीख रही थी, जैसे अभी भी मैं इस में बैठा हूँ। 13 साल पुरानी याद मेरी आँखों के सामने आ रही थी और एक एक इंच का मुझे पता था कि डाइनिंग हाल में किस टेबल पर हम बैठे थे। वोह ही स्विमिंग पूल, वोह ही सब कुछ वैसे का वैसा ही था। वोह ही बार और वोह ही डांस फ्लोर। कुलवंत को दिखाया तो वोह कुछ उदास हो गई कि काश मैं ठीक होता और हम दुबारा इजिप्ट जाते लेकिन भाग्य में जो लिखा है, वोह तो हो कर ही रहेगा। किया मज़ा है इंटटनेट का, हम तो खामखाह इतनी फोटोग्राफी करते रहे।
दो घंटे सब ने आराम किया और आयशा आ गई। कोच सड़क पर आ गई थी और अब हम ने कारनैक टैम्पल देखने जाना था। दरअसल लुक्सर में बहुत टैम्पल हैं और इन को देखने के लिए बहुत वक्त चाहिए। बोट के दरवाज़े पर एक छोटा सा कोई दस फीट लम्बा पुल बना हुआ था, जो किनारे पर आसानी से पहुँचने के लिए था क्योंकि बोट से छलांग लगा कर बाहर आना असंभव था। बाहर आते ही हम पत्थर की सीढ़ी से ऊपर आ गए और खड़ी कोच में बैठने लगे। कोच भर गई तो हम टैम्पल की और रवाना हो गए। जब हम कारनैक टैम्पल पहुंचे तो गेट पर आयशा ने टिकट लिए और हम भीतर दाखल हो गए। रास्ते में छोटे छोटे मौनूमैंट और बुत बहुत थे। एक जगह खड़े हो गए और आयशा ने एक बुत दिखाया। यह बुत एक आदमी का था जिस का पेट बहुत बड़ा था और उस की शकल ऐसे थी जैसे हंसते हंसते उन की आँखों से पानी बह रहा हो। आयशा ने बताया कि रानिओं को जब बच्चा होने लगता था तो रानी को हंसाने के लिए ऐसे लोग होते थे, जिन की वजह से उस घोर पीढ़ा के समय रानी को हंसी आ कर बचा आसानी से पैदा हो जाता था। इस बात पर सभी हंसने लगे।
अब हमारे सामने ही बहुत बड़ा कारनैक टेम्पल था जिस का मुख्दुआर बहुत बड़ा था और इस मंदर को जाने के लिए फैरो के ज़माने का रास्ता बना हुआ था, जिस के दोनों ओर भेडीओं जैसे जानवरों के बुत बने हुए थे जो एक दुसरे के करीब मुश्किल से चार पांच फीट की दूरी पर होंगे। अब यह रास्ता चालीस पचास फीट ही बचा था। आयशा ने बताया कि उस समय यह रास्ता कई मील लम्बा होगा। अब दुसरी ओर आबादी है और हकूमत इन घरों को तोड़ कर आगे के बुतों का रास्ता खोदना चाहती है लेकिन लोग यह होने नहीं देते। यह मामला कब से कोर्ट में है। फिर आयशा ने बताया कि उस समय जब बादशाह या राजकुमारों की शादी होती थी तो इस रास्ते पर बहुत धूम धाम होती थी। राजे की पालकी यहाँ से गुजरती थी और उन के ऊपर फूलों की बार्ष होती थी। एक बात सुन कर हम सब हैरान हो गए कि उस समय बादशाह अपनी लड़किओं से भी शादी करते थे। यह सुन कर सब को बहुत अजीब लगा। भीतर गए तो दीवारों और छतों पर मूर्तियां ही मूर्तियां थी जिन के साथ इतिहास भी लिखा हुआ था। अगर भाषा पड़नी आती हो तो इस इतिहास को समझना मुश्किल नहीं था क्योंकि मूर्तियां ऐसे बनी हुईं थीं जैसे कोई बात चीत चल रही हो। एक जगह आ कर आइशा ने एक पेंटिंग दिखाई जिस पर दो बादशाह अपने अपने हाथों में एक बड़ा रस्सा पकडे, उस रस्से को गाँठ दे रहे थे। यह दोस्ती की गाँठ थी, दो बादशाह, दुश्मन के खिलाफ एक मुठ हो गए थे और दोस्ती की गाँठ पक्की हो गई थी। उन बादशाहों के नाम आइशा ने बताये थे लेकिन मुझे कुछ भी याद नहीं रहा।
आगे आगे गए तो रास्ते में बुत ही बुत थे। टैम्पल की दीवारें इतनी कारागरी से बनाई हुई थी कि हैरानी इस बात की थी कि इतने भारी पत्थर उस समय में जब क्रेनें भी नहीं होती थी, तो कैसे एक दूसरे के ऊपर रखे होंगे, फिर ऐक्यूरेट इतने कि सीमेंट के बगैर एक दूसरे के ऊपर रखे हुए थे उन के बीच में से सूई भी जा नहीं सकती थी । दीवारों पर जो सीन थे आइशा लगातार बताये जा रही थी। एक जगह एक सीन को उस ने समझाया कि कुछ सर्जन कोई ऑपरेशन कर रहे थे और उन के सर्जिकल टूल एक जगह रखे हुए थे जो हम सब को हैरानीकुन लगे कि वोह सभ्यता कितनी एडवांस रही होगी। आगे गए तो एक बहुत बड़ी दीवार पर फैरो के बड़े बड़े चित्र खुदे हुए थे, जिन की लंबी लंबी उस समय के फैशन की दाहड़ीआं थीं। कई जगह तख़्त पर बैठे राजे रानी के पैरों पर झुक कर कुछ रख रहे थे। इन सब मूर्तियों को देख कर मन करता था कि काश हमें यह सब पड़ना आता हो। बहुत ही दिलचस्प लग रहा था।
इर्द गिर्द बहुत बुत टूटे पड़े थे। पत्थरों की किस्मों के बारे में भी आइशा बता रही थी कि बहुत से ग्रेनाइट जैसे सख्त पत्थर असवान से लाये गए थे जो कई सौ मील दूर है। यह पत्थर दरिया नील के ज़रिये लाये गए होंगे कि छकड़ों पे लाद कर, यह कोई समझ नहीं पाया । कुछ भी हो, इन भारी पत्थरों को आज भी ट्रांसपोर्ट करना बहुत मुश्किल है और यह बात साईंसदानों के लिए सरदर्दी बनी हुई है। आगे एक बहुत ऊंचा अशोक पिल्लर जैसा पिल्लर था जिस पर बहुत कुछ लिखा हुआ था और हैरानी की बात यह थी कि यह एक ही पीस में था। यह कमसेकम सत्र अस्सी फ़ीट ऊंचा होगा। नीचे से यह कोई पचीस तीस फ़ीट चौड़ा होगा और चोटी पर तीन चार फ़ीट चौड़ा होगा। इसे देख कर हैरानी यह हो रही थी कि इतने बड़े पत्थर को यहां कैसे लाया गया होगा और फिर इसे तराश कर उस पर इतिहास लिख कर इस को खड़ा कैसे किया होगा, जो आज तक वैसे का वैसा ही खड़ा है। इन सब की फोटो हम ने लीं लेकिन आज यह सब इंटरनैट पे देखा जा सकता है।
बहुत कुछ मुझ को याद नहीं लेकिन जब देख कर हम बाहर आये तो जसवंत बोला, ” मामा ! और देशों से भी टूरिस्ट लोग बहुत आये हुए हैं लेकिन इन सब में हम दो इंडियन ही हैं, हम शोर तो बहुत मचाते रहते हैं कि अंग्रेजों ने हमारे इतिहास को बहुत गलत पेश किया है लेकिन सच्ची बात तो यह है कि इंडियन लोगों को इतिहास में रूचि ही कोई नहीं है। यहां जितने गोरे गोरीआं हैं, कितने धियान से एक एक चीज़ को देखते हैं, सवाल करते हैं और सब से बड़ी बात यह है इजिप्ट का इतिहास भी ज़्यादा अंग्रेजों ने ही ढून्ढ निकाला है, बहुत से अँगरेज़ इतहास्कारों ने इजिप्ट का इतिहास ढूढ़ते ढूढ़ते सारी उम्रें यहां ही गुज़ार दीं। हावर्ड कार्टर नें भी अपना सारा जोर तूतनखामन को ढूंढने में लगा दिया। उस का विशवास था कि उस की ममी जरूर वैली ऑफ दी किंग्ज़ में ही होगी और उस ने सच कर दिखाया। उस समय तो टैक्नॉलोजी भी इतनी एडवांस नहीं थी, फिर भी उस ने यह काम कर दिखाया “, मैंने कहा जसवंत, ” हमें तो तारीख लिखना भी परदेसियों ने सिखाया, हम तो बस एक ही बात जानते थे कि यह दूआपर है, यह त्रेता है, यह सतयुग है और आज का युग है कल युग “, जसवंत खिल खिला कर हंस पड़ा।
कई घंटे यहां घूम फिर कर हम बोट में वापस आने को तैयार हो गए। आधे घंटे में ही हम क्रूज़ बोट में आ गए। जब हम वापस आये तो थॉमसन हैलिडे वालों के नोटिस बोर्ड पर लिखा हुआ पड़ा। लिखा था, ” कल रात को अरेबियन नाइट का प्रोग्राम होगा, कृपा अपने लिए इजिप्शियन गैलाबाया और साथ में पगड़ीआं भी ले आएं और पहन कर इस रात का मज़ा लें “, इस के बारे में एक इज्प्शिन वेटर से पुछा तो उस ने बताया कि हम बाजार में जाएँ और कपडे की दुकानों से यह रेडीमेड कपडे ले आएं। कुछ गोरे बाहर जाने लग पड़े। हम भी एक एक कप्प कॉफी का ले कर शाम की सैर का मज़ा लेने बाहर को चल दिए। चलता. . . . . . . . . . .