कविता

हमें माफ करना बापू

हमें माफ करना बापू

बापू ये देश वही है
बस लोग बदल गए हैं ।
अपने स्वार्थ की खातिर
सब खुदको ही छल रहें हैं ।

तुम्हारी टोपी नेता सभी को पहनाते हैं
नाम तुम्हारा लेकर सबको घड़ी-घड़ी बहकाते हैं ।
स्वार्थ के लिए अब लोग कुछ भी कर जाते हैं ।
पर देशभक्ति की बातों से सभी नजरें चुराते हैं ।

बीत गया है समय वो अब
जब तुम्हारे पीछे सब चले आते थें ।
एक गाल पे लगे जो थप्पड़
तो दुसरी गाल भी धर देते थें ।

बापू गांव अब किसी को फूटी आंख नहीं सुहाता है ।
किशानों की दशा देख अब कोई आंसू नहीं बहाता है ।
आजादी के साथ तुमने देखे थे जो सपने ।
उसे तोड़ा है बापू मिलकर हम सबने ।

भ्रष्टाचार गया नहीं
गरीबी अभी मिटी नहीं ।
कानुनों पे अब भी अंग्रेजी का पहरा है
हर माथे पे बंधा गुलामी का सेहरा है ।

हिंदी किसी को भाती नहीं
अंग्रेजी है कि जाती नहीं ।
पश्चिमी संकृति ने है जकड़ा ऐसे
कि अपनीवाली रास आती नहीं ।

आज भी महिलाओं का जीना दुभर है
दु:शासन की छाया जो बैठी हर ओर है ।
लोग यहां बस मंदिर-मस्जिद के लिए लड़ते हैं
रोजाना जाने कितने बम-बारूदों से मरते हैं ।

विदेशी सामानों से भरा पड़ा बाजार है
स्वदेशी निर्माण से नहीं किसी को प्यार है।
माफ करना हमें बापू सब है यहां बदल गया
आजादी के नाम से देश तेरा है जल गया ।

मुकेश सिंह
सिलापथार,असम

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl