कविता

डायन

डायन

न मार मुझे मैं डायन नहीं
मैं तो खुद मरने को हूं तरस रही ।
मैं क्या बुरा करुंगी किसी का
जब मैं खुद मर-मर के हूं जी रही ।
भूल गया वो दाता जिसको
मैं जनम जनम की अभागन वही ।
ना मिला मायके में प्यार जिसे
ना ससुरा में मिला परिवार मुझे ।
पति भी ना हुआ है साथी मेरा
बस दुख ने डाला है मेरे घर पे डेरा ।
जिसको मिले ना पेट भर खाने को
और चिथरे भी बचे ना तन छिपाने को ।
भूख ने जिसे नोंचनोंच कर खाया है
खुशीयों ने जिसे दस्तक दे दे कर रुलाया है ।
जिसे विधाता ने भी ठूकराया है
और समय ने पल-पल जिसे आजमाया है ।
मैं दुख नामक नगरी की वो महारानी ह
किस्मत की लिखी मैं एक अधूरी कहानी हूं।
न मार मुझे मैं डायन नही
तू कहे तो इस ओर न आउं कभी ।
पर सच सच मैं यह कहती हूं
किसी का बुरा ना मैं कभी करती हूं ।
न मार मुझे मैं डायन नही
अब इस ओर न मैं आउंगी कभी ।

-मुकेश सिंह
असम
9706838045

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl