” आज की मधुशाला “
वो मेरी यादों में आकर, दे जाये ऐसी हाला।
प्यास बुझाने के एवज वो, दे गई ऐसी प्याला।
यह कैसा दस्तूर बनाई, मेरे संग रह करके वो,
मदिरालय के जैसी लगती है, यह मेरी मधुशाला॥१॥
कातील निगाहों से मेरे, दिल को घायल कर डाला।
उसको पाने कि खातीर मैं,बन गया यहाँ मतवाला।
उसके आने की आहटों से, घुम रहा हूँ यहाँ वहाँ,
जिन्दगी बन गई है ऐसे, जैसे हो यह मधुशाला॥॥२॥
मुझसे मिल गई एक दिन वो,दिल को पिला गई हाला।
प्यार कि बातें करती थी वो, प्यार मुझमें जगा डाला।
हँसती थी इठलाती थी वो, बात बनाकर चली गयी,
कैसा रस का स्वाद दिया वो,मेरी थी वो मधुशाला॥३॥
मेरे जीवन में आई थी , सुन्दर बनकर एक प्याला।
ऐसा जाम पिलाती थी वो, झुम गया झूमने वाला।
आनंद उठाती झुमकरके, प्रेम जता कर आज यहाँ,
रस का जाम पिलाई थी वो, बनाकर गई मधुशाला॥४॥
ठन्डेपन का एहसास दिलाति, दे जाती ऐसी हाला।
बैठकर सामने नजरों से, देकर जाती एक प्याला।
पिते हि प्याला को दुनिया का, रंग बदला सा हो जाता है,
जहाँ पर प्याला बनाती थी , जगह बन गई मधुशाला॥५॥
लोग झुमते गाते पिते है, जब लेते हैं एक प्याला।
मस्ती में सैर कर घुमते हैं, हाथों से देते हाला।
मैं भी वहाँ जाकर देखा तो, सब बैठकर झुम रहे थे,
मैं भी वहाँ सम्लित हुआ तो, दे दिया मुझे एक प्याला॥६॥
मैं डूबा उसके नशा में तो , इधर- उधर बहकने लगा।
आनंद में मेरा मन डूबा, लीया बार-बार प्याला
बाहों में आकर लिपट गई, पीते-पीते नशा हुई ।
हर बार पिया एक बार पिया ,रास गई यह मधुशाला॥७॥
यौवन का मदिरा छलका जब, आया प्यालों पर प्याला।
तिरछी नजरों के हाथों से, भर डाला सबका प्याला।
सब अपने-अपने हाथों में, लिए बैठ एक साथ-साथ,
मदिरा को पीने वाले सब, एक नाम दिया मधुशाला॥॥८॥
मधुशाला में मधुरस लेने , आते थे सब लेकर हाला।
मधुरस पान कराने हेतु ,बना दी सभी का प्याला।
झुमे नाचें गाये सब लोग, आपस में टकराते थे,
यह कैसा जीवन पाया सब, बन गया यहाँ मधुशाला॥९॥
आँखों का रंग बदलकर के, प्यालों में हाला डाला।
छलकते हुए प्याला लेकर,उठा लिया झूमने वाला।
अपने-अपने प्यालों को सब, खाली करने लगा यहाँ,
फिर दौड़ा मदिरालय कि ओर, बना दिया सब मधुशाला॥१०॥
मदिरालय को ढूंढ रहा था,मैं पीने के लिए हाला।
कमरे के अन्दर देखा था ,वहाँ बन रहा था प्याला।
अन्दर जाकर खाली जगह पर , एक टेबल पर बैठ गया।
मौज मस्ती का धूम मचा था,मील गई वो मधुशाला॥११॥
अलगअलग सब झूम रहे थे, हाला पीकर मतवाला।
इधर-उधर मैं देख रहा था, वो सब लड़ा रहे प्याला।
मादक बनकर झूम रहे थे, डूबकर ख्वाबों में वहाँ,
तभी मेरे सामने आई,लेकर प्याला मधुबाला।॥१२॥
क्रमशः •••
__________________रमेश कुमार सिंह