कविता :वक़्त का फेर
वक़्त का फेर
वक़्त है ढल चुका
और ढल चुका वो दौर भी….
फ़िर भी आइने में, वक़्त पुराना ढूंढते हैं !!
महफिलें जमतीं थीं
दोस्तों के कहकहों से….
दीवारों-दर पे अब, उनके निशान ढूंढते हैं !!
कुछ दर्द वक़्त ने
तो कुछ हैं अपनों ने दिए….
अकेले आज भी, दिल के टूकड़ों को ढूंढते हैं !!
अंजु गुप्ता