पूछ रहा है रावण कब तक मुझे ही जलाते रहोगे
पूछ रहा है रावण कब तक मुझे ही जलाते रहोगे,
कब तक अपने दोषों को तुम यूँ ही छिपाते रहोगे।
मैंने कौनसा ऐसा गुनाह किया था जो जलाते हो,
कब तक सच्चाई छिपा औरों को बरगलाते रहोगे।
बहन की बेइज्जती का बदला लेने को उठाई सीता,
इस सच्चाई को तुम कब तक यहाँ दफनाते रहोगे।
नहीं छुआ था सीता को उसकी मर्जी के विरुद्ध,
लेकर अग्नि परीक्षा कब तक तुम ठुकराते रहोगे।
वंश को अपने मिटा दिया पर पैर पीछे नहीं हटाया,
पल पल रंग बदलते हो कब तक पीठ दिखाते रहोगे।
मैं रहा अपने धर्म पर अडिग, रखी हर मान मर्यादा,
बिना अंदर झांके कब तक तुम ऊँगली उठाते रहोगे।
मेरे बाहुबल, मेरी विद्वता, मेरी भक्ति को भूल कर,
कब तक गीत तुम मेरी बुराइयों के यहाँ गाते रहोगे।
पहले तुम राम बनो फिर मुझे जलाना यहाँ आकर,
कब तक सुलक्षणा जला मेरा पुतला इठलाते रहोगे।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत