दो कुलों की लाज है कंधों पर लेकिन कोई घर नहीं, कितनी लाचार हूँ मैं, बेदर्द जमाने को कोई खबर नहीं। रीति रिवाजों की जंजीरों में जकड़े रखा गया मुझको, देखो! उस ईश्वर का भी माना किसी ने कोई डर नहीं। हर पल हर घड़ी खेला गया मेरी भावनाओं से यहाँ, देह को मेरी नोच […]
Author: डॉ. सुलक्षणा अहलावत
ग़ज़ल
घी डालकर आग बुझाने लगे हैं लोग, सलाह मांगकर समझाने लगे हैं लोग। पीठ में छुरा मारना छोड़ दिया है आज, बस छुरा दिखाकर रिझाने लगे हैं लोग। जिंदगी की कीमत कुछ नहीं बची अब, जान लेकर मसले सुलझाने लगे हैं लोग। गिरगिट भी हैरान है इन्हें रंग बदलते देख, कैसे अपनों को ही उलझाने […]
ग़ज़ल
हालात मुझे बड़े अजीब नजर आने लगे, हर तरफ गरीब ही गरीब नजर आने लगे। अमीर करने लगे खिलवाड़ जिंदगियों से, कुछ यूँ खुद को बदनसीब नजर आने लगे। सरकारें गुलाम हो गयी दौलत वालों की, पुराने मंजर फिर से करीब नजर आने लगे। गुलामी की आदत डालनी पड़ेगी फिर से, जानी दुश्मन ही अब […]
कलम रो रही है
शब्द घायल हैं, कलम रो रही है, खबर यह सहन नहीं हो रही है। देश सेवा को समर्पित जीवन, मातृभूमि को अर्पित जीवन, जनता देशभक्त को खो रही है। खबर यह सहन नहीं हो रही है। घर के हालातों को समझकर, दुश्मनों को मारा उसने घुसकर, बस यूँ जनता चैन से सो रही है। खबर […]
वो रूठता रहा
वो रूठता रहा बात बात पर, मैं मनाती रही, उसकी झूठी मोहब्बत में दिल बहलाती रही। वो हर बार सितम करता रहा, मैं सहती रही, देख उसके झूठे आँसू खुद को तड़पाती रही। हर ख़्वाहिश उसकी पूरी, खुद को मारकर, कितनी नादान थी मैं, खुद को लुटाती रही। जब भी मिलता देता वो वास्ता मोहब्बत […]
जिंदगी की सांझ
बस दो चीजों के सहारे जिंदगी की सांझ बीत रही है चाय की चुस्की और मीठी यादें तुम्हारी बस और कोई सहारा नहीं लबों से लगती है जब प्याली चाय की खो जाती हूँ कहीं दूर तुम्हारी यादों की क्षितिज में भूल जाती हूँ मैं हर इक दर्द ओ गम तुम दोनों से कोई प्यारा […]
छूना चाहता हूँ मैं
छूना चाहता हूँ मैं तेरे अनकहे जज्बातों को होंठो में दबी रह गयी बातों को बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या? छूना चाहता हूँ मैं तेरे दिल के उस कोने को जो रहता है मजबूर रोने को बोलो इसका कोई जतन नहीं क्या? छूना चाहता हूँ मैं तुम्हारी उन अधूरी इच्छाओं को दफनाई गयी जरूरी […]
ग़ज़ल
ना जाने कब ये हालात बदलेंगे, गरीबों के प्रति जज़्बात बदलेंगे। हिकारत की नजरों से देखते हैं, ना जाने कब सवालात बदलेंगे। पूंजीवाद को बढ़ावा मिल रहा, कब इनके भी दिन रात बदलेंगे। बचपन जल रहा है इस आग में, कौन जीत में इनकी मात बदलेंगे। भरपेट खाना नहीं मिल पाता है, कैसे इनके भी […]
गीतिका
गिरी हूँ तो उठूंगी यह ठान रखा है, हारी हूँ तो जीतूंगी यह मान रखा है। परवाह नहीं करती इस दुनिया की, इसे बड़े ही करीब से जान रखा है। कोई किसी का नहीं सब स्वार्थी हैं, किसने रिश्तों का ध्यान रखा है। धन दौलत ही सब कुछ हो गयी है, अमीर ने कब गरीब […]
ये लोग
घरों में नहीं रहने वाले पछताएंगे ये लोग, फिर खुद ही औरों को समझाएंगे ये लोग। अभी भी मजाक में ले रहे हैं ये कोरोना को, एक दिन आइसोलेशन में ही पाएंगे ये लोग। बहुत खुश हो रहे हैं लॉकडाउन तोड़कर, घर से बाहर निकलने में घबराएंगे ये लोग। आज जो डर गया समझो वो […]