गीत/नवगीत

रावण

दशहरे के दिन रावण उदास था
मैं भी वहीँ कहीं आस पास था
रावण की उदासी मुझे खल गयी
एक बरछी सी सीने पर थी चल गयी
लोग खुश हैं फिर क्यों तुम हो उदास
क्या बात है कोई आज ख़ास
धीरे से रावण ने सर को उठाया
देखा मुझे और फिर मुस्कराया
इस दिन का करता हूँ मैं भी इंतजार
राम के हाथों मरने को रहता तैयार
शतकों है बीते फिर भी मजबूर हूँ मैं
अभी राम से भी बहुत दूर हूँ मैं
राम के हाथों मरने के ख्वाब अधूरे हैं
राम के वेश में ये तो मुझसे बुरे हैं
हे राम ! किस जन्म की सजा दे रहे हो ?
पापियों के हाथों मरने पे मजबूर कर रहे हो
अब तुम ही बताओ कब तरस खाओगे ?
हे राम ! बताओ ! तुम कब आओगे ? तुम कब आओगे ?

सभी श्रद्धालुओं को विजयादशमी को कोटिशः शुभकामनाएं ! इस अवसर पर पेश है रावण की व्यथा जो आज राम के हाथों फिर एक बार मरने के लिए तैयार है । उसे राम का इंतजार है ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।