गीत/नवगीत

रावण उवाच

दशहरा है आज जानता हूँ मैं
बहुत खुश हो ये भी मानता हूँ मैं
श्री राम की विजयगाथा सुनाते
मेरी मौत पे भी हो उत्सव मनाते
बताते बुराई तो हरदम है हारी
भलाई पड़ी है हरदम ही भारी

नया वक्त है अब नया है तराना
बताता हूँ तुमको हकीकत फ़साना
था तब मैं अकेला बुरा दुराचारी
अब तो हैं खरबों हवस के पुजारी
ये गुंडे मवाली अपराधी लुटेरे
ये खुले घुमे हैं भलाई पे पहरे
अब तुम ही बताओ बुराई है हारी ?
भलाई तो हारी छिपी है बिचारी

जो मैंने किया उसकी माफ़ी नहीं है
बस पुतले जलाना ही काफी नहीं है
जलाना है तो अब बुराई जलाओ
अपने दिलों से बुराई भगाओ
करुणा दया को दिल में बसाओ
नफ़रत जलन को तुम दिल से भगाओ
मिट जायेगा बुराई का नामो निशां
बस एक बार राम बनकर दिखाओ
बस एक बार राम बनकर दिखाओ

विजयादशमी की शुभकामनाएं

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।