एक पत्नी का अपने फौजी पति के नाम पत्र
छलक जाती हैं मेरी आँखें तुम्हें जाते हुए देखकर, अब कब आओगे सहम जाती हूँ सिर्फ यही सोचकर. अगले ही पल खुद को संभाल लेती हूँ मैं, क्या हुआ गर तुम पास नहीं हो मेरे, तुम्हारा प्यार तो मेरे पास है| जरूरी नहीं मेरे पास रहना तुम्हारा, ”भारत माँ”_ को तुम्हारी मुझसे ज्यादा जरूरत है. क्या हुआ गर बेटा पूछता है मुझसे, माँ पापा कब आयेंगे ?क्या हुआ गर बेटी को तुम्हारी याद सताती है. सुला देती हूँ अक्सर दोनों को प्यार से लोरी सुनाकर|
माँ भी तुम्हें बहुत याद करती हैं, बाबूजी भी उदास है तुम्हें पास न पाकर. आ रही है फिर से करवा चौथ और दिवाली, सहम जाती हूँ फिर से यही सोचकर, कैसे सजाऊँगी बिन तुम्हारे जिंदगी के वो पल, फीके हैं बिन तुम्हारे मेरे श्रृंगार, समझा लेती हूँ दिल को फिर यही सोचकर, क्या हुआ गर तुम इस बार नहीं आओगे ? कितनी ही माँओं की आस तुम बचाओगे.सिन्दूर बचाओगे कितनी ही बहनों का दुश्मनों से टक्कर लेकर.
“मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो पाया तुम्हें जीवन साथी के रूप में.मत होना कभी उदास “ऐ प्यार मेरे “सलाम करती हूँ आज मैं फिर से तुम्हारे जज्बों को, खुश हूँ मैं बहुत तुम्हें अपनी जिंदगी में पाकर.” यूँ तो आसान नहीं होता बिन तुम्हारे अकेले रहना, अगले ही पल तन जाता है गर्व से सर मेरा, जब देखती हूँ तुम्हें “भारत माँ_” के लिए अपनी खुशियों की कुर्बानी और सर्वस्व न्यौछावर करते हुए.
हाँ मुझे पूर्ण विश्वास है तुम आओगे जरूर एक दिन हम सबके लिए ढेर सारी खुशियाँ लेकर बहुत सारा प्यार लेकर.
तुम्हारी अर्धांगिनी — जय हिन्द जय भारत
— वर्षा वार्ष्णेय, अलीगढ़