तराशा है तुझको खुदा ने कुछ इस तरह कि कोई भी नुक्स नजर नहीं आता मुँह फेर लूँ गर तेरी रवायत से अनजाने में बिन तेरे कहीं सुकून नजर नहीं आता। तू जान है मेरी मैं हूँ तेरी अदना सी धड़कन तू सुरूर है मेरा मैं हूँ जैसे तेरी एक उलझन तुझे हो न हो […]
Author: *वर्षा वार्ष्णेय
कविता
अति सुंदर दर्द की दुकान है दर्द की दवा आज झूठी मुस्कान है बेल रहे हैं पापड़ आज हम अंत से हम सभी अनजान हैं जिंदगी के रास्ते सीधे तो नहीं हिम्मत से चलने में ही शान है मत झुकाना सिर कभी तुम दिल का फकत यही फरमान है सस्ते हैं आँसू ऐ दिल तेरे […]
बेटी से सास तक का सफर
मत समझना दुनिया वालो हमें नाजुक अपनी तरह आता है हमें आज भी प्यार को बखूबी निभाना / मिले हैं जो जख्म हमें बिना जुर्म किये बचपन से न दिल तोड़ेंगे कभी हम बेबफा बनकर तुम्हारी तरह/ काश जज्बात को नापने का कोई मीटर होता , जान पाते गर तुम मेरे दिल का हाल ,अच्छा […]
कविता
माँ, हम सबके जीवन में इतने ड्रामा क्यों होते हैं ? एक औरत अपनी जिंदगी क्यों नहीं जी सकती ? क्यों कदम कदम पर इतनी परीक्षाएं देनी होती हैं ? एक पल में हँसना ! एक पल में रोना , कैसा है जिंदगी का अजनबी से फसाना तुम आज चुप क्यों हो बोलती क्यों नहीं […]
कविता
मजबूर मत करना किसी को इस दौर में चाँदी के सिक्कों की खनक चलती है वक़्त कहाँ है अब किसी के पास यादों की सौगात क्यों मचलती है उसूलों को तोड़कर चल दिये हैं जिस ओर मयस्सर सूकून कहाँ अकेले हैं सब इस जहाँ में अब खिलखिलाहट कहॉं खिलती है बेगाने लोगों की भीड़ में […]
बेटियाँ
व्रत ,पूजा ,उपवास ,कथा करती चली आ रही है सदियों से कब सोचा कुछ भी अपने लिए फिर भी सवाल उठते रहे कभी दीवारों पर सतिये बना कभी जमीन पर गेरू से लिपकर माँगती रही दुआएँ सबके लिए फिर भी अर्थपूर्ण दृष्टि गड़ती रही क्या दोष था उसका बेटा न होने का लोगों के ताने […]
कविता
एक सूनापन एक खालीपन बस चन्द यादें बीते हुए कल की वो कैसे समझ पाता जिसने जीवन का वो रूप देखा ही न था जो जिया था उसने हर पल हर क्षण, सिसकते हुए वीरानों में कभी धूप की किरणों से जब छलक उठा था दर्द का सागर वो कैसे समझ पाता जिसने जीवन का […]
शायद ये दर्द सभी औरतों का होता है
जब गुजर गया सोने सा वक़्त उसने कहा तुम कर लो जो करना चाहती हो कब मना किया तुमको जो चाहो कर सकती हो सहमी आँखों में वो सारे पल गुजर गए यकायक चलचित्र की तरह वो दृश्य गुजर गए वो हर पल की बंदिशें वो हर पल जैसे ठगा जाना आने वाले कल की […]
काश कभी तो ऐसा होता
तुम समझ जाते बिन कहे मेरे दिल का हाल । न कह पायी जुबां वो दर्द जो तुम कभी सोच भी न पाए वो बारिश का आना उम्मीदों का फिर से जाग जाना कहोगे तुम कभी तो आओ आज साथ मे भीगते हैं । खो जाती हूँ फिर से कल्पना में तुम्हारे हाथों में हाथ […]
कविता
क्यों न जिंदगी को फिर से एक नए सिरे से शुरू करें तुम लौट चलो उसी ओर जहां से चले थे हाथ पकड़कर भुलाकर वो सारे किस्से वो अतीत का कड़वा दौर देखो आज फिर से पुकार रहा है वही सपनों का सफर वो चाहतें बच्चों की वो खिलौनों का पुराना दौर आज सब पीछे […]