मेरी कहानी 173
पिछली शाम बैली डांस और घागरा डांस देख कर सोये थे। सुबह उठे तो जसवंत बोला,” मामा ! कल रात तो मज़ा ही आ गया “, हाँ ! ” अब लग रहा है कि हम मिस्र में हैं “, मैं बोला और हम ब्रेकफास्ट के लिए डाइनिंग हाल में आ गए और खाने के लिए अपनी अपनी प्लेटें हाथ में पकडे लाइन में खड़े हो गए। प्लेटें बहुत बड़ी होती थीं और ब्रैड ऐंड बटर से ही शुरू होता। आगे आगे चलते जाते और एक एक पीस किसी केक या अन्य मठाई का टुकड़ा डाले जाते । तकरीबन सब लोग मांसाहारी ही थे, इस लिए मीट से बने हुए खाने जैसे बेकन, सौजेज, गैमन, पोर्क पाई, स्कॉच एग्ग, बीन्ज़ और सब से आखर में होता था एग्ग फ्राई जो तरह तरह के मसाले डाल कर लेते थे। एक हाथ में प्लेट पकडे और दूसरे हाथ में चाय या काफी का कप्प पकडे अपने अपने टेबल पर आ जाते। भूख लगी हुई होती थी और सबी लोग खाने पर टूट पड़ते। यह भी हम ने देखा था कि इजिप्ट में बहुत भूख लगती थी, शायद यह मौसम की वजह से होगा। अब अनीता और उस की माँ से हम ऐसे घुल मिल गए थे कि लगता था हम पड़ोस में रहते हों और हमारी गुफ्तगू एक साधाहरण पड़ोसियों जैसे हो। बातें करते और हंसते हंसते ब्रेकफास्ट ख़तम हो गया और तैयार होने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए। मैं और जसवंत ने शायद ही किसी दिन सर पर पगड़ी रखी हो, अपने बाल कंघी से पीछे की ओर करके रबर बैंड से बाँध लेते थे। उस समय मेरे सर पर बाल काफी थे लेकिन अब तो सारे बाल उत्तर गए हैं, शायद मैडीकल कंडीशन की वजह से या बुढापे के कारण।
9 बजे आइशा आ गई थी। हम सब हाल में आ गए थे। आइशा ने हमें बताया कि आज वोह हमें ऐड़फू टैम्पल ले जायेगी। कल हमारी बोट किसी और जगह थी और आज जब हम बाहर आये तो किसी और जगह थी क्योंकि रात को सोये हुए हमें पता ही नहीं चलता था कि हम वहीँ हैं या कहीं और। बोट से बाहर आ कर हम कोच में बैठ गए। कोई आधे घंटे बाद ही हम ऐडफू टैम्पल के सामने खड़े थे। आइशा ने गेट कीपर को टिकट दिए और हम आगे चलने लगे । यह टैम्पल बहुत ही बड़े थे और दीवारों पर उस ज़माने के फैरो की तस्वीरें खुदी हुई थीं जो हैरानीजनक थीं। उस समय के सीन जो ज़्यादा देवताओं की पूजा के सम्बन्ध में ही थे, दिखाई पड़ते थे। इन तस्वीरों के साथ साथ उस समय की भाषा में सब कुछ विरतान्त से लिखा हुआ था। आइशा ने इतिहास तो बहुत बताया था लेकिन अब ज़्यादा याद नहीं रहा। कुछ बातें याद हैं, यह टैम्पल रामेसज़ के ज़माने के बने हुए थे और यह टैम्पल उस समय के उन के देवताओं की श्रद्धा में बनाये गए थे । उन का प्रसिद्ध देवता फाल्कन गौड होरस था और एक और था सेथ। फाल्कन एक बाज़ जैसा पक्षी होता है। इसी लिए इन तस्वीरों के सर पर बाज़ जैसी शक्ल बनाई हुई थी। आइशा ने बताया कि यह टैम्पल पटोल्मी के ज़माने में 2200 साल पहले बने थे जिन का ज़िक्र उन की जीविनीओं में मिलता है। ऐसे ही इसी ज़माने के टैम्पल कौमोम्बो और फिले टैम्पल थे। इन टैम्पलों को देख कर यह पता चलता है कि उस समय देश बहुत अमीर था। लोग बहुत खुशहाल थे।
यह एरिया भी विशाल था, जगह जगह मंदिर ही मंदिर थे। कारीगरी कमाल की थी। एक जगह आइशा ने दिखाया कि उस समय दरिया नील के पानी का लैवल देखने के लिए निशाँ लगे हुए थे। कई दफा जब दरिया नील का पानी ज़्यादा बार्शों की वजह से ऊपर आने लगता था तो खतरे के निशाँ को देखते हुए जान माल की हिफाज़त के लिए इंतज़ाम शुरू हो जाते थे, जैसे आज के ज़माने में सभी दरियाओं पर पानी के लैवल के निशान लगे हुए होते हैं और जब ही पानी खतरे के निशान से ऊपर जाने लगता है तो हाहाकार मच जाती है। एक जगह एक कुंआ बना हुआ था जो अब तो सूखा था लेकिन किसी ज़माने में दरिया नील के पानी से यह कूंआं भरा रहता था। इजिप्ट का इतिहास भी हमारे भारत देश से ही मिलता जुलता है। जैसे हमारे देश पर बिदेशियों के हमले होते रहे हैं, इसी तरह इजिप्ट का इतिहास भी इन हमलों से भरा पड़ा है। उस समय इजिप्ट पर नूबियन फैरो ही राज करते थे लेकिन धीरे धीरे रोमन और ग्रीक घुसने लग गए थे । नूबियन लोगों की ताकत ख़तम हो गई और इन रोमन और ग्रीक का प्रभाव बढ़ने लगा। रोमन लोग कट्टर ईसाई थे। उन्होंने ने इन नूबियन लोगों का जीना हराम कर दिया था और उन को उन के ही मंदिरों में जाने से मना करते थे और उन को बहुत नफरत करते थे। जैसे मुसलमानों ने हमारे मंदिर बर्बाद किये थे, इसी तरह इन क्रिश्चियन लोगों ने यह टैम्पल बर्बाद करने शुरू कर दिए। उन के देवताओं के बुत बर्बाद कर दिए और कई मंदिरों पे उन के देवताओं के चेहरे खराब कर दिए। एक जगह आइशा ने दिखाया, एक टैम्पल की दीवारें और छत काली थी, जो लगता था, इस को आग लगाईं गई थी। इस जगह देखने को बहुत कुछ था। आइशा ने बताया कि धीरे धीरे यह मंदिर बन्द हो गए थे, या यह भी हो सकता है कि सारा शहर ही उजाड़ दिया गया हो। समय के साथ रेगिस्तान की मट्टी उड़ उड़ कर इन मंदिरों पे पड़ने लगी और इन मंदिरों के ऊपर चालीस चालीस फुट ऊंची मट्टी की तह जम गई और यह मंदिर आखों से दूर हो गए। इन मंदिरों के ऊपर और घर बन गए और किसी को कुछ भी पता नहीं था कि वोह इन मंदिरों के ऊपर रहते है।
फिर कोई फ्रैंच मैन आया जिस का नाम तो मुझे याद नहीं लेकिन यह बात दो सौ साल पहले की है। उस ने ही पहले नोटिस किया कि इस गाँव के नीचे मंदिर हैं। उस ने ही खुदाई का काम शुरू कराया और इन की सफाई शुरू की और आज इन मंदिरों को देखने दुनिआं भर से लोग रोज़ाना आते हैं। आइशा ने एक बात और बताई कि इन मंदिरों की दीवारों पर जो इतिहास लिखा हुआ है, उन का ट्रांसलेशन जर्मन इतहास्कारों ने किया है, जिस से उस समय की सही पिक्चर मिल गई है और उस समय की जो मिथहासिक और गलत धारणाएं थीं, वोह भी समझ आ गई है। बहुत कुछ हम ने यहां देखा लेकिन बहुत बातें भूल भी गई हैं। अगर थोह्ड़ा सा भी इजिप्ट का इतिहास हमें मालूम होता तो और भी मज़ा आ जाता। आगे गए तो एक जगह छोटी सी पार्क बनी हुई थी, कुछ खाने पीने और दुसरी दुकाने थीं। एक जगह इजिप्शियन संगीतकार कुर्सीयों पर बैठे सारंगियों जैसे साज़ बजा रहे थे जो नेपाली सारंगियों जैसे दिखाई देते थे और वोह अपनी भाषा में कुछ गा रहे थे। जसवंत के कैमरे में फिल्म ख़तम हो गई थी जो यहाँ एक दूकान से मिल गई। एक गोरे ने भी फिल्म खरीदी लेकिन उस से यह फिल्म अपने कैमरे में लोढ नहीं हो रही थी। उस ने जसवंत से मदद मांगी। ऐसे कामों में जसवंत बहुत हुशिआर है, उस ने तुरंत कैमरे में लोढ कर दी, गोरा खुश हो गया। यहां हम ने एक दूकान से चाय के साथ कुछ बिस्कुट लिए। अब आइशा ने वापस जाने का इछारा कर दिया। जल्दी ही कोच में बैठ कर हम अपनी बोट में वापस आ गए। दुपहर का खाना खा कर हम क्रूज़ बोट के ऊपर डैक चेर्ज पर लेट गए। आज कोई और जगह जाना नहीं था, इस लिए कुछ देर आराम करके हम ने अपने लिये बाज़ार में गैलाबाया खरीदने जाना था क्योंकि आज रात को अरेबियन नाइट का प्रोग्राम होना था और हम ने यह इजिप्शियन ड्रैस पहन कर हाल में जाना था।
हम दोनों लेटे लेटे बातें कर रहे थे, कि अनीता की माँ भी हमारे पास ही एक डैक चेअर पर लेट गई। बहुत बातें तो याद नहीं लेकिन एक बात याद है। जैसे पुर्तगाल में एक बुढ़िया ने अपनी बेटी के बारे में हमारे साथ बातें की थीं, इसी तरह अनीता की माँ भी अनीता के बारे में हम से बातें करने लगी। बोली, ” अनीता को मैं बार बार कहती हूँ कि शादी करके सैटल हो जा लेकिन यह मेरा कहना मानती ही नहीं, कई बोये फ़्रैंड्ज़ के साथ जाती रही लेकिन शादी नहीं कराती, अब जो इस का नया बोये फ्रैंड है, उस का अच्छा कारोबार है और लड़का भी बहुत अछे सुभाव का है, मैं चाहती हूँ कि अनीता इस से शादी करा ले, बच्चे हों और मैं भी दादी बन जाऊं लेकिन यह मानती ही नहीं, इस को डिप्रेशन भी हो चुक्का है और बहुत देर तक दुआई लेती रही, पता नहीं इस के मन में किया है”, बुढ़िया उदास लग रही थी और मुझे इस बात की समझ आई कि बेछक हर देश की सभ्यता इलग्ग इलग्ग है लेकिन फिर भी हम इंसान हैं और एक बात सभी माँओं में है कि उन के बच्चे शादीआं करा लें और वोह दादा दादी बने। पता नहीं कितनी देर हम ने बातें कीं, फिर उठ कर हम बाहिर जाने के लिए तैयार हो गए क्योंकि हम ने अपने लिए अरबी ड्रैस खरीदनी थी। जब हम बाहर आये तो हमारे पीछे कुछ बेचने वाले पढ़ गए। इन लोगों से छुटकारा पाना बहुत मुश्किल होता था। इन्हीं लोगों से तंग आ कर एक गोरी तो दूसरे दिन ही इजिप्ट छोड़ कर वापस इंग्लैण्ड आ गई थी। खैर हम भी इस के आदी हो गए थे और किसी ना किसी तरह इन से छुटकारा पा ही लेते। घुमते घुमते हम कपडे की दुकानों की ओर आ गए। यह दुकाने बिलकुल इंडिया की तरह ही थीं। दुकानदार निकल कर बाहर आ जाते और कलाई से पकड़ कर हमें दूकान में ले आते और गैलाबाया हैंगर से उतार कर हमारे शरीर से मैच करते और पगड़ी हमारे सरों पर बाँध देते। जितनी कीमत वोह मागते, हम उस से आधी बोलते। कुछ देर माथापच्ची के बाद हम दोनों ने गैलाबाया और पगड़ीआं खरीद लीं। एक बात हम ने महसूस की कि हर कोई इंग्लिश बोलता था, टाँगे वाले से ले कर छोटे छोटे बेचने वाले बच्चों तक। मैंने नीले रंग का गैलाबाया लिया था और जसवंत ने हरे रंग का। अब हम आगे चलने लगे तो एक सोडा वाटर वाले की दूकान थी और कुछ इजिप्शियन मर्द और औरतें बैठे कोक का मज़ा ले रहे थे। हम ने भी बैठ कर कोक पिया। एक बात हमारी समझ में आई कि यह अरेबियन नाईट का प्रोग्राम हर बोट और हर डांसिंग बार में होता था .इस से हर रोज़ पता नहीं कितने हज़ार पाऊंड के गैलाबाया की सेल होती होगी .यह एक किसम का ढंग ही था सेल बढाने का .
इस दूकान से बाहर आ कर हम होटलों को देखने लगे। इन्हीं होटलों में से एक में वोह लड़कियां रहती थीं जो हमें उस शाम को मिली थीं। जो पता उन लड़कियों ने दिया था, हम उस में चले गए। वहां घूम रहे एक कर्मचारी को जसवंत ने रूम नंबर बताया कि वोह उन लड़कियों को बता दें कि हम लाउंज में बैठे हैं। दस मिंट में ही वोह लड़कियां नीचे आ गई और बहुत खुश हो कर मिलीं। फिर उन्होंने हमारे लिए काफी मंगवाई। किया बातें हुईं, मुझे याद नहीं लेकिन कुछ देर बाद हम बाहर आ गए। यहां सड़कें बहुत अछि थीं और होटल, एक से एक बड़ीआ बिल्डिंग थी। कुछ देर घूमने के बाद जसवंत बोला, ” मामा ! टॉयलेट जाने की इच्छा हो रही है “, मैंने कहा,”जसवंत ! किसी होटल में घुस जाते हैं “, हंसते हुए हम एक होटल में चले गए। बड़े से काउंटर पर बैठा लड़का बहुत खुश हो कर मिला। जसवंत ने साफ़ साफ कह दिया कि वोह टॉलयेट जाना चाहता है। वोह हम को आगे ले गया। कुछ मिंट बाद जब हम बाहर आये तो एक और इजिप्शियन आ कर हम से मिला। बातें होने लगीं, और कुछ देर बाद बातें बॉलीवुड फिल्मों की शुरू हो गईं। उस ने बताया कि हर शाम को लोग टीवी के सामने बैठे इंडियन फ़िल्में देखते हैं और सब से प्रिय हीरो इन का अमिताबचन है। उस ने बताया कि कुछ साल पहले अमिताबचन लुक्सर में आया था। उस को देखने के लिए सारा लुक्सर खड़ा हो गया था। शोहले फिल्म यहां बहुत चली थी और जितना अमिताबचन को लोग चाहते थे, उतना ही अमज़द खान को। इस के बाद, बात अछि फिल्मों की होने लगी तो वोह शख्स बोला,” दरअसल बॉलीवुड फ़िल्में मुझे अब इतनी अछि नहीं लगती, क्योंकि इस में फैंटसी ही होती है, मुझे इंग्लिश फ़िल्में ज़्यादा पसंद हैं, क्योंकि वोह असलियत के बहुत नज़दीक होती हैं। फैंटसी फ़िल्में उन की भी हैं लेकिन वोह एक फैंटसी फिल्म के तौर पर ही देखि जाती हैं ” , कुछ देर बाद हम इस होटल से बाहर आ गए।
घुमते घुमते हम अपनी बोट में वापस आ गए। खरीदे हुए सामान के बैग हम ने कमरे में रख कर बार में आ गए और वेटर को दो बीयर लाने को कहा। बहुत गोरे गोरीआं बैठे ठंडी बीयर पी रहे थे और ऊंची ऊंची बातें हो रही थीं। पता ही नहीं चला, कब खाने का वक्त हो गया। सभी उठ कर डाइनिंग हाल में अपनी अपनी सीटों पर विराजमान हो गए। जब खाना ख़तम हुआ तो हम बातें करने लगे। याद नहीं, कैसे बात चली, बात ज्योतिष विदिया की होने लगी। मैंने अनीता को कहा, ” अनीता ! ज़रा अपना हाथ तो दिखा “, अनीता ने अपना हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया। मैं बहुत देर तक हाथ को देखता रहा, फिर एक दो दफा उल्ट पुल्ट कर देखा और बोला,” अनीता ! मैं कोई ज्योतिषी तो नहीं हूँ, फिर भी कुछ कुछ जानता हूँ, पहली बात तो यह है कि तुम सोचती बहुत हो “, मेरे इतना कहने से ही अनीता का मुंह लाल हो गया, जिस को मैंने भांप लिया और फिर बोला,” एक बात और है, तेरे दिमाग में बातें बहुत आती हैं लेकिन तुम कोई फैसला नहीं कर पाती कि तुम क्या करना चाहती हो, तेरे विचार बहुत अच्छे और धार्मिक हैं, धर्म कोई भी हो, तुम उन धार्मिक बातों को ग्रहण करती हो, जो तेरे मन को भाता है, एक बात और भी है कि तुम ज़िन्दगी में बहुत बीमार रह चुक्की हो। यह बीमारी कोई ऐसी नहीं थी जो खतरनाक हो, बस यूं ही तुम अपने आप में निराश रहती हो लेकिन यह बात भी है कि इस निराशता से बाहर तुम तब आओगी, जब तुम शादी करा लोगी और शादी के बाद तेरा भविष्य बहुत उज्वल होगा ”
सच बताऊँ, अनीता का वोह चेहरा अभी तक मुझे याद है। उस के चेहरे पर एक चमक सी आ गई। उस की माँ भी खुश हो गई। मैंने फिर कहा,” मैं गलत भी हो सकता हूँ क्योंकि मैं कोई प्रोफैशनल नहीं हूँ जो हौरोस्कोप के बारे में सही जानकारी रखता हो। अनीता हंस कर बोली,” मिस्टर भामरा ! जो तू ने बताया वोह सौ फी सदी सच है, अब मैं अपनी ज़िन्दगी का फैसला लेने ही वाली हूँ “, अभी हमारी बातें ख़तम ही हुई थीं कि मुझे इस बात का पता ही नहीं चला कि कुछ इजिप्शियन वेटर मेरी तरफ देख रहे थे। एक लड़का जो कोई होगा बीस बाइस वर्ष का, हमारे टेबल पर आया और अपना हाथ मेरे आगे कर दिया और कहने लगा, ” प्लीज़ मेरी किस्मत में किया लिखा है, बताएं “, मैं कुछ हैरान सा हो गया और उस को कहा कि मैं कोई जियोतिषी नहीं हूँ लेकिन वोह मेरे पीछे ही पढ़ गया। आखर में मैंने उस का हाथ पकड़ा और देखा कि उस के हाथ में एक ही लाइन थी। ऐसा हाथ मैंने कभी देखा ही नहीं था। सोच सोच कर मैंने उस को कहा,” देखो ! एक दिन तुम बहुत बड़े आदमी बनोगे क्योंकि तुमारा हाथ एक रेअर हैंड है, तुमारी किस्मत में बिदेस लिखा हुआ है, यह इंगलैंड अमरीका या कैनेडा हो सकता है, इस वक्त तुमारे घर की हालत इतनी अछि नहीं लेकिन कुछ ही सालों में तुम पैसों में खेलोगे “, वोह लड़का इतना खुश हुआ कि उस ने अपने दोस्तों को भी इजिप्शियन भाषा में कुछ बोला और वोह भी मेरे पीछे ही पढ़ गए। वोह सभी बहुत सीरियस दिखाई दे रहे थे। इस के बाद उठ कर हम डाइनिंग हाल से बाहर आ गए।
कुछ देर के लिए हम अपने अपने कमरों में आ गए,” मामा ! आज तो तुम को मान गया, सभी को खुश कर दिया “, मैंने कहा, ” जसवंत! आधी बातें तो अनीता की मां ने बता ही दी थीं, जब हम ऊपर बैठे थे, इस के बाद अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं था, रही बात उस लड़के की, तो चाहे हो इंडिया, चाहे हो इजिप्ट सभी इंग्लैंड अमरीका जाने के इच्छक हैं और अमीर बनने के खुआब देखते हैं, सो उन के हिसाब से ही मैंने भविष्य बना दिया “, जसवंत हंसने लगा और हम अरेबियन नाइट के लिए गैलाबाया पहनने लगे। हम यह इजिप्शियन कपड़े पहन कर ऊंची ऊंची हंसने लगे। अजीब कार्टून जैसे बन गए थे। इन कपड़ों में बाहर आने को हम शर्माने लगे थे लेकिन जब हम हाल में आये तो देखा सभी अरबी ड्रैस पहने हुए थे और एक दूसरे की ओर देख देख कर हंस रहे थे। कुछ देर बाद हम भी उन लोगों की हंसी में शामल हो गए थे। चलता. . . . . . . .