कविता : सिर्फ अपने लिए
मैं भी जीना चाहता हूँ
कुछ पल
सिर्फ अपने लिए ….हाँ
सिर्फ अपने लिए
बस मैं ही मैं हूँ
और मेरी तन्हाई
कुछ बातें करें,
सच….
कौन जीता है अपने लिए?
सब जीते है किसके लिए ?
कुछ परिवार के लिए
कुछ रोज़गार के लिए
कुछ दुनियादारी निभाने के लिए
कुछ समझने और समझiने के लिए
कुछ अपनों को मानाने के लिए
कुछ गैरों को भुलाने के लिए
हम जीते हैं–
किसी व्यावसायिक मज़बूरी में
किसी सामाजिक कमज़ोरी में
कुछ सरकारी नियम निभाने में
कुछ आपसी विवाद सुलझाने में
काश मैं इनको छोड़ पाता
और कुछ पल जी पाता
सिर्फ अपने लिए ….हाँ
सिर्फ अपने लिए
— जय प्रकाश भाटिया
१४/१०/२०१६