कविता

कसक

एक कसक सी रह गई
जिंदगी में
तेरे बेहिसाब उम्मीदों पर
हम खड़े न उतरे
ताउम्र सहते रहे गीले-शिकवे
फिर भी तुम्हारे मुहब्बत के
काबिल न रहे
इस बात की कसक रहेगी
हमेशा दिल में
शायद जायेगी मरते वक़्त
साथ ही मेरे
न करना तुम फिर याद मुझे
रहे न कोई कसक मेरे लिए,
तुम्हारे दिल में
गुजरा हुआ वो वक़्त जो जमाने
के नज़रों में हम साथ-साथ रहे
पर फासले दिलों के दरम्यान
हमेशा बरकरार रहे।
क्या चाहा था तुमसे मैंने, कि जो
तुम दे न सके
थोड़ी सी मुहब्बत, दिल में पनाह
इसे भी तुम हमारी खता समझते रहे
धन- दौलत से बड़े रहीश हो तुम
पर मुहब्बत में तुम फकीर निकले।

— बबली सिन्हा 

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]