बर्बाद करदी बस्तियाँ
भूख के परिवेश में, गद्दार करते मस्तियाँ
इक महल के वास्ते, बर्बाद करदी बस्तियाँ
ज़ुल्मो-सितम के जोर पर, कब्जा किया पाताल में
कैसे सागर पर चलेंगी, गुर्बतों की कश्तियाँ
भीख में पाकर सियासत, मुल्क के मालिक हुए
करके मक्कारी इन्होंने बना ली हैं हस्तियाँ
नाम है जनतन्त्र लेकिन लोकशाही है कहाँ
झूठ ने सच की जला डाली समूची अस्थियाँ
“रूप” को अपने छिपाया, पहन कर खादी धवल,
चोर कितनी शान से लड़ने लगे हैं कुश्तियाँ
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’