बालकविता – सब बच्चों का प्यारा मामा
शरदपूर्णिमा है जब आती।
चमक चाँद की तब बढ़ जाती।।
धरती पर अमृत टपकाता।
इसका सबको “रूप” सुहाता।।
नभ में कैसा दमक रहा है।
चन्दा कितना चमक रहा है।।
कभी बड़ा मोटा हो जाता।
और कभी छोटा हो जाता।।
करवा-चौथ पर्व जब आता।
चन्दा का महत्व बढ़ जाता।।
महिलाएँ छत पर जाकर के।
इसको तकती हैं जी-भर के।।
यह सुहाग का शुभ दाता है।
इसीलिए पूजा जाता है।।
जब भी बादल छा जाता है।
तब मयंक शरमा जाता है।।
लुका-छिपी का खेल दिखाता।
छिपता कभी प्रकट हो जाता।।
धवल चाँदनी लेकर आता।
आँखों को शीतल कर जाता।।
सारे जग से न्यारा मामा।
सब बच्चों का प्यारा मामा।।
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’