“यह कैसा परिवर्तन है?”
यह कैसा परिवर्तन है
दृष्टि दया की भीख नहीं है
गरीब दुखियों की चीख़ भरी है
एक तरफ है भरा पुरा सब
दूसरी ओर है खाली खाली
यह कैसा परिवर्तन है
महलों के सुख उपर हैं
फुटपाथों पर दुख भरा है
छत है पत्थर की एक तरफ
एक तरफ है खुला गगन
यह कैसा परिवर्तन है
कुटिलता, लोभ भरा कहीं है
कहीं भरा है निश्छलता का भाव
प्रेम स्नेह की कमी कहीं है
कहीं सहृदयता का भाव भरा है
यह कैसा परिवर्तन है
कहीं पैसो की बाढ लगी है
कहीं मेहनत की एक झड़ी है
कही खाते -खाते कहीं मरते है
कहीं-कही खाये बिना मरते है
यह कैसा परिवर्तन है
रमेश कुमार सिंह
२०-०५-२०१६