काँटों पर चलूंगी सम्हल कर
काँटों पर चलूंगी सम्हल कर
देखूंगी जरा मैं भी चल कर
मेरी जिद्द है दीया जलाना
मर मिटूंगी बाती सी जल कर
मनाना है दिवाली जरूरी
मोम बह जाय चाहे पिघल कर
सनम ढल जाऊँगी मैं तुममें
सीख ली मैंने खुद में गल कर
मैं भी कभी पूजी जाऊँगी
देखती हूँ मूरत में ढल कर
जाने क्यों तुम पर ही यकीं है
भले ही अब तू मुझसे छल कर
प्रीत की रीत मैंने निभाई
अब तू मेरे प्रश्नों का हल कर
©किरण सिंह