ग़ज़ल १
हम रूठ गए और उनको मनाना नहीँ आया
उन्हें अहसास मोहब्बत का दिलाना नहीँ आया ।
करते है बहुत वादे वो यूँ चाहत के रात दिन
ऐसे चाहत में उनको प्यार जताना नहीँ आया ।
सुनो इतना मासूम है जैसे कि दुआ है कोई
फकत सादगी है बातों को बनाना नहीँ आया ।
मर मिटे हम उनकी सच्चाई की अदा पर
फरिश्ता है उसको कभी तडपाना नहीँ आया।
सागर सी निगाहों में लिए तूफ़ान बैठा है
डुबा दे किसी को वो सैलाब उठाना नहीँ आया ।
किस्मत पे ‘जानिब’ नाज है पाया जो तुझे
बस हँसाता है उसे मुझको रुलाना नहीँ आया ।
— जानिब