ग़ज़ल ३
अब नज़र में हम जहाँ के आ गए
यूँ प्यार का नशा ही बिखरा गए।
चैन से गुल ओ बुलबुल जी रहे थे
सितमगर क्यों कहर बरपा गए।
चाहतें देखना छुपकर किसी की
किसी की हरकतों से शर्मा गए ।
जुदाई की घड़ी मिटने नहीँ देते
लोग ऐसे जाने कहाँ से आ गए।
शजर कुम्हला गया है धूप से
देखो झूमकर हैं सावन आ गए ।
हो न पाईं मुलाक़ातें रूबरू तो
शब्द बनकर वो रूह में छा गए ।
जुदा है अब है कहाँ अहसास ये
सांस बन एक दूसरे में समा गए।
जानिब ढूँढ़ती है एक दीपक यहाँ
और वो लाखों दीये राह में जला गए।
— जानिब