गीत/नवगीत

गीत : बिन बुलाए कभी चला आता

बिन बुलाए कभी चला आता, बुलाने पर भी कभी ना आता;
रखता है वह अजीब सा नाता, देख सुन उर को वह रहा आता !
मूल को सींचता, नहीं पत्ता, दिए स्नेह चले अलबत्ता;
ख़्याल ब्रह्माण्ड का रखे चलता, ध्यान में पिण्ड हर रखे रहता !
योजना उसी की रही सत्ता, प्रयोजन उसी के है हर कर्त्ता;
जाने अनजाने नचा हर भोक्ता, प्रयोक्ता बना रहा हर भगता !
ले के आया नहीं था कुछ प्राणी, ले के कुछ जा सकेगा ना त्राणी;
मात्र अनुभूति के लिए फिरता, कौन मालिक है पता ना लगता !
नियन्त्रण चक्र वह किए रहता, बैठ गुरुचक्र भी कभी जाता;
‘मधु’ को मुक्ति भुक्ति विच रखता, प्रबन्धन सृष्टि का सिखा चलता !
गोपाल बघेल ‘मधु’