दोहे : त्यौहारों पर किसी का, खाली रहे न हाथ
श्राद्ध गये तो आ गये, माता के नवरात्र।
लीला का मंचन करें, रामायण के पात्र।।
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विजयादशमी साथ में, लाती बहु त्यौहार।
उत्सव मानवमात्र के, जीवन का आधार।।
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शरदपूर्णिमा से हुआ, सरदी का आगाज।
दीन किसानों के भरा, घर में खूब अनाज।।
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एक दूसरे से जुड़े, धर्म और ईमान।
चन्द्रकलाओं पर टिका, पर्वों का विज्ञान।।
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करवाचौथ सुहाग का, कितना पावन पर्व।
अपने पतियों पर करे, सभी नारियाँ गर्व।।
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उसके बाद अहोई का, आता है त्यौहार।
माताएँ इस दिन करे, कुलदीपक को प्यार।।
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दीपक यम के नाम का, लोग रहे हैं बाल।
धन्वन्तरि के चित्र पर, चढ़ा रहे जयमाल।।
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संगम पाँचो पर्व का, दीवाली के साथ।
त्यौहारों पर किसी का, खाली रहे न हाथ।।
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’