मुक्तक/दोहा “दोहा” *महातम मिश्र 17/10/201617/10/2016 देखो रावण जल रहा, संग लिए दस माथ एक बाण नहि सह सका, धनुष वाण कर नाथ।। पंडित है शूर योद्धा, शिर चढ़ा अहंकार अधर्म सगा कबहू नहि, सगी न निज तलवार।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी