गीतिका/ग़ज़ल

जीवन के कोरे काग़ज पर…

जीवन के कोरे काग़ज पर कोई गीत ग़ज़ल लिखता हूँ।
कम होती साँसे लिखता हूँ बीत रहा पल पल लिखता हूँ॥

अपनों ने कुछ दर्द दिये है और जमाने के कुछ ग़म है।
कुछ मुस्काने भी लिखता हूँ कुछ आँसू बेकल लिखता हूँ॥

रोज नयी सुबहा होती है रोज एक दिन ढल जाता है।
कुछ बीते कल के किस्से कुछ आने वाला कल लिखता हूँ॥

गैरो ने जो ज़ख्म दिये है उनकी पीडा तो कम है।
अपनो ने जो साथ किये है मैं वो अनगिन छल लिखता हूँ॥

गिरती दीवारों पर टूटे से छप्पर का छोटा सा घर।
लोग इसे कुटिया कहते है मैं तो शीश महल लिखता हूँ॥

दाग बहुत है दौलत वालों के उजले उजले दामन पर।
मै लेकिन मेरे दामन को उज्जवल से उज्जवल लिखता हूँ॥

चहरे पर चहरा है उनके क्या कोई पहचान करेगा।
उनकी सूरत उनकी सीरत दोनो को ही छल लिखता हूँ॥

सतीश बंसल


 

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.