लाश बिछेगी कब तक
पूछ रहा घनश्याम का गाँव,
मोदी लाश बिछेगी कब तक,
क्यों न इतने गोले बरसाओ,
राख बने सारे आतंक,
पाक नहीं गर मान रहा,
पाक मिटा कर तो देखो,
आतंको के आका को,
दोजख पहुंचा कर तो देखो,
हूरों की आशा में मरते,
ये जो पागल अभिमानी,
मरने से पहले पापी ने,
दश लाश बिछाने की ठानी,
जमीं में दफनाए जाने का,
इनको मौका ना देना,
परमाणु की लड़ी पडी जो,
इनसे राख बना देना,
अब कहता घनश्याम का गाँव,
कोई भी अश्रु बहाये ना,
जो छाती पीट रही माँ,
वो भी चीत्कार उठाये ना,
जै बोलेगी वीरों का,
बिन आँसू यहाँ बहाये माँ,
जब पाक राख हो जाए,
जल जाए युवा जो है भरमा।।
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।। प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला सुलतानपुर
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