सामाजिक

लेख:- अच्छाई और बुराई

बुराई निस्संदेह बुरी है परंतु उससे भी बुरी है दिखावे की अच्छाई क्योंकि दिखावे की अच्छाई मनुष्य के हृदय में अभिमान उत्पन्न करती है। अच्छा काम करना बहुत अच्छी बात है मगर अच्छे काम का अभिमान करना बहुत बुरी बात है। जिस प्रकार नींबू के रस की एक बूंद दूध के पूरे समुद्र को फाड़ देने में सक्षम है उसी प्रकार अभिमान नामक एक अवगुण आपकी समस्त अच्छाइयों को दूषित करने के लिए पर्याप्त है।

नाम के लिए काम करना आपको पुण्य और प्रशंसा तो नहीं दिलाता मगर अभिमानी जरूर बना देता है। अगर किसी के लिए कुछ अच्छा करने का अवसर मिले तो समझ लेना कि परमात्मा आपके पुण्यों में वृद्धि करना चाहता है। जितना आपसे बन सके उतना करते रहो ताकि हर दिन आपको कुछ नये पुण्यों का फल प्राप्त होता रहे। जिस दिन आपके मन में यह गलतफहमी पल जाती है कि मेरी वजह से किसी का भला हुआ या कोई काम सिर्फ मेरे कारण हुआ, तभी आपके अन्दर अभिमान प्रवेश कर जाता है। यही अभिमान आपके पतन का कारण भी बन जाता है।

इससे बचने के लिए बड़े-बूढ़ों ने कहा है कि “नेकी कर दरिया में डाल” अर्थात अच्छाई कर के भूल जाइए। अगर आप अपने द्वारा किए हुए सत्कार्यों को गिनते रहेंगे तो आपके भीतर अहंकार आना अवश्यंभावी है। अब्दुर्रहीम खानखाना बहुत बड़े दानी थे। परंतु दान देते हुए उनकी दृष्टि हमेशा झुकी रहती थी। ये बात जब तुलसीदास जी को पता चली तो उन्होंने उन्हें ये पंक्तियाँ लिख भेजीं
ऐसी देनी देन जु कित सीखे हो सेन
ज्यौं ज्यौं कर ऊँचौ करौ त्यौं त्यौं नीचे नैन
अर्थात ऐसा दान देना आप कहाँ से सीखे हो कि जैसे जैसे तुम्हारे हाथ ऊपर उठते हैं वैसे वैसे तुम्हारी आँखें नीची होती जाती हैं।

रहीम जी ने इसका जो उत्तर लिखकर गोस्वामी जी को भेजा वो हर काल में मानव मात्र के लिए एक आदर्श उदाहरण बनकर रह गया है। वो उत्तर था-
देनहार कोई और है देत रहत दिन रैन
लोग भरम हम पर करैं ता सौं नीचे नैन
अर्थात देने वाला तो कोई और है (परमात्मा) एवं वो दिन रात दिए जा रहा है। परंतु लोग समझते हैं कि मैं दे रहा हूँ, इसलिए मेरी आँखें झुकी रहती हैं।

ये उत्तर विचार करने जैसा है। अगर हम इस दिशा में विचार करेंगे तो हमारा अभिमान स्वयमेव ही नष्ट हो जाएगा। कुछ अच्छा तो हर पल जरूर करते रहो परंतु ये सब प्रभु की कृपा के कारण हो रहा है, ऐसा सोचते रहोगे तो कार्य तो अच्छा होगा ही, आप भी अच्छे बने रहोगे।

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]