कुंडलिया छंद
(1)
पाखण्डी पाखण्ड का, रखे न कोई लेख
सट्टे के बाजार में, लेखा जोखा देख ।
लेखा जोखा देख, लुटे कितनो के सपने
कौन बने सरताज,बचे है कितने अपने
होते क्यों गुमराह, देख पलड़े की डंडी
चांदी काटे खूब, नित्य ही ये पाखण्डी ।
(2)
लूटे सबको नित्य ही, सच में ये पाखण्ड
पहन मुखोटा घूमते, मिले न इनको दण्ड ।
इनको कैसा दण्ड, मौत से कभी न डरते
मौक़ा करे तलाश, चूक न कभी ये करते
लक्ष्मण ये इंसान, अन्य के धन पर टूटे,
इनकी हो पहचान, देश को जो भी लूटे ।
(3)
आतंकी सब कर रहे, पशुता का व्यवहार,
दानवता का दौर यह, मानवता पर भार |
मानवता पर भार, असुर ये निर्दय भारी
करें क्रूर व्यवहार, कष्ट में जनता सारी
प्रकटों ले अवतार,भला करने जन जन की
करों जगत उद्धार, मार कर ये आतंकी |
(4)
आतंकी बनकर मनुज, धरे दानवी रूप
इनका जो भी साथ दे,समझें दनुज स्वरूप ।
समझें दनुज स्वरूप, हृदय विषधारा बहती.
आका के ही हाथ, डोर असुरों की रहती ।
घड़ा पाप का पूर्ण, आख़िरी यह नौटंकी
रहे न कोई शेष, नष्ट हों सब आतंकी ।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला