कुण्डली/छंद

कुंडलिया छंद

(1)

पाखण्डी पाखण्ड का, रखे न कोई लेख
सट्टे के बाजार में, लेखा जोखा देख ।
लेखा जोखा देख, लुटे कितनो के सपने
कौन बने सरताज,बचे है कितने अपने
होते क्यों गुमराह, देख पलड़े की डंडी
चांदी काटे खूब, नित्य ही ये पाखण्डी ।

(2)
लूटे सबको नित्य ही, सच में ये पाखण्ड
पहन मुखोटा घूमते, मिले न इनको दण्ड ।
इनको कैसा दण्ड, मौत से कभी न डरते
मौक़ा करे तलाश, चूक न कभी ये करते
लक्ष्मण ये इंसान, अन्य के धन पर टूटे,
इनकी हो पहचान, देश को जो भी लूटे ।

(3)
आतंकी सब कर रहे, पशुता का व्यवहार,
दानवता का दौर यह, मानवता पर भार |
मानवता पर भार, असुर ये निर्दय भारी
करें क्रूर व्यवहार, कष्ट में जनता सारी
प्रकटों ले अवतार,भला करने जन जन की
करों जगत उद्धार, मार कर ये आतंकी |

(4)
आतंकी बनकर मनुज, धरे दानवी रूप
इनका जो भी साथ दे,समझें दनुज स्वरूप ।
समझें दनुज स्वरूप, हृदय विषधारा बहती.
आका के ही हाथ, डोर असुरों की रहती ।
घड़ा पाप का पूर्ण, आख़िरी यह नौटंकी
रहे न कोई शेष, नष्ट हों सब आतंकी ।

— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- [email protected] पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)