ताना बाना
टिका है जीवन ताने-बाने पर,
कुछ धागे आड़े तो कुछ तिरछे हैं ।
उलझ चुके हैं बुरी तरह कुछ धागे ,
कोशिश सुलझाने की बेकार है ।
रखो सभाँल कर सुलझे हुओं को,
बहुत नरम नाजुक डोर से बंधे हैं ।
लगे न झटका पकड़ लो इन्हें तुम,
संजीदगी से पाल कर बड़े किए हैं।
हैं सिक्के के दो रूप ताना बाना ,
रहकर आगे-पीछे बराबर चलते हैं।
रौनक है जग में एक से दूसरे की ,
नहीं सरता काम एक से दूसरे का है ।
हो चाहते बुनना सुंदर सी चादर,
सामंजस्य दोनों में करना जरूरी है ।
है महत्व दोनों का अपना अपना,
एक के बिना चादर की गांठ अधूरी है ।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम