कविता

सुहागिन

ना श्याम के नाम की मेंहदी रची ना श्याम ने अपना नाम दिया

फिर भी जब प्रेम की बात चली सबने राधा किशन नाम लिया

ओढ पिया की प्रीति चुन्नर वो राधा भी कान्हा की क्या सुहागन थी ।

माथे पर ना सिंदूर सजाई गले मे ना मंगल सुत्र बाँधा था

सुहाग वाली हाथो मे चुडा ना सजा फिर भी कान्हा अंग आधा था

जो प्रेम की अमर कहानी बनी वो राधा भी कान्हा की क्या सुहागन थी ।।

दो जिस्म और एक जान थे वे एक दुजे के पहचान थे

वे रिश्ता समाज ने ना जोडा था फिर भी एक दूसरे के सम्मान थे

वे कैसे सबने स्वीकार किया वो राथा भी कान्हा की क्या सुहागन थी ।।

साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)