अवसर
ये अवसर क्या है इसकी उपयोगिता क्या है और परिणाम क्या है ? अवसर व्यक्ति को ईश्वर के द्वारा प्रदत्त एक ऐसा मौका है, जो मनुष्य को उसकी योग्यता और सुझबुझ सिद्ध करने का मौका प्रदान करता है परिणामस्वरुप व्यक्ति अपने जीवन को अपने इच्छा अनुरूप ढाल सकता है और पूर्ण संतुष्टि के साथ व्यवस्थित जीवन जी सकता है | व्यक्ति चाहे कितना भी बुद्धिशाली हो लेकिन अवसर के अभाव में वो अपनी बुद्धिमत्ता सिद्ध नही कर सकता अधिक ज्ञानवान मनुष्य को अवसर का आभाव अवसाद में डाल सकता है |
अवसर मानव के जीवन में बड़ा महत्व रखते है व्यक्ति के अंदर चाहे कितनी भी योग्यता हो लेकिन वो योग्यता तब तक सिद्ध नही होती जब तक कि वो सही अवसर को पहचान कर उसका समुचित प्रयोग नही करता | अवसर व्यक्ति की योग्यता को सिद्ध करता है|अवसर के आभाव में ज्ञान का कोई महत्व नही है चाहे कितना भी ज्ञान हो परन्तु अवसर के आभाव में वो धरा का धरा रह जाता है |
आज लाखों लाख विध्यार्थी अनेक प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे हुए है उन विद्यार्थियों से उनके माता पिता और गूरुजनों की अनेकानेक आकांक्षाएंजुड़ीहुई है और इन सब अभिलाषाओं की पूर्ति तब होगी जब विद्यार्थी जीवन में आने वाले अवसरों की महत्ता को पहचान कर उसका प्रयोग करेंगे आपने कई लोगों को ये कहते सुना होगा की “अगर मुझे एक मौका मिल जाए न तो में फलां काम इतने अच्छे से कर सकता हूँ ” आये दिन होने वाले इंटरव्यूज में भी हम इस तरह के वाक्य सामान्य रूप से सुन सकते है |
इस अवसर(opportunity) की तलाश में लगे आज के कई युवा जिन्हें अवसर मिल जाता है वो आगे निकल जाते है और जिन्हें अवसर नही मिलता या मिला हुआ अवसर किसी कारणवश चुक जाते है, वो युवा अवसाद से घिर जाते है और भगवान् को कोसने लगते है अवसर वास्तव में ईश्वर का ही एक रूप है भगवान् मनुष्य का जीवन संवारने और उसके जीवन को गति देने के लिए अवसर के रूप में आकर सहायता करते है|
महाभारत में कृष्ण जब दुर्योधन के पास शांति प्रस्ताव लेकर गये तो वास्तव में वो उसके समक्ष एक अवसर था की वो चाहे तो अपने आपको व सगे सम्बन्धियों को विनाश से बचा सकता है परन्तु दुर्योधन नही माना औरप्रमाद में उसने अवसर गंवा दिया | इसी प्रकार रामायण में श्री राम अंगद को अपना दूत बनाकर रावन के पास भेजते है यदि रावण चाहता तो उस अवसर का प्रयोग कर अपने वंश के ध्वंस को बचा सकता था| लेकिन रावन ने उस अवसर को छोड़ दिया जो की उसके समूल नाश का कारण बना यद्यपि रावन वेदवेत्ता था ग्यानी था | लेकिन उसने अवसर का लाभ नही लिया | इसी प्रकार विद्यार्थी कितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त करले कितने भी अच्छे अंक अर्जित कर ले यदि उसे अवसर (opportunity) को पहचानना और उसका प्रयोग करना नही आता तो उसकी शिक्षा की कोई उपयोगिता नही है |
लौहार जब लोहा गरम होता है तब लोहे पर प्रहार करता है | उसके प्रहार लोहे को उसके मन अनुरूप आकृति में ढाल देते है | इसके पीछे कारण यह है की लौहार ने गरम होते लोहे पर उचित अवसरपर पूरी शक्ति के साथ प्रहार किया |
अवसर का सही प्रयोग करने की शिक्षा किसी विध्यालय में नही दी जाती है| हाँ वहां आप अपने विषयों का ज्ञान तो प्राप्त करते है | लेकिन आप उस ज्ञान को कहां, कैसे और कब प्रदर्शित करेंगे ये विद्यार्थी को स्वयं ही सोचना पड़ता है अवसर पहचाने की विद्यार्थी की यही कला उसके विकसित बुद्धि की परिचायक होती है |
कई लोगो ये भी कहते सुने जाते है कि “मुझे तो अवसर नही मिला नही तो मै क्या से क्या कर देता”. यदि वास्तव में देखा जाए तो ऐसी बातें करने वाले वो लोग होते है जिन्हें अवसर तो मिले लेकिन वो उस अवसर को पहचान नही पाए एक और दृष्टी से देखा जाए तो ये कहीं न कहीं उनके अविकसित ज्ञान का परिचायकहै| यदि उन्होंने वास्तविक ज्ञान लिया होता तो वो अपने लिए अवसर स्वयं ही खोज लेते यहाँ बात किसी परीक्षा विशेष की नही हो रही है बल्कि जीवन में प्राप्त होने वाले अवसरों की हो रही है जो की हमारे जीवन को बनाते है और बिगाडते है |
कई लोग कहते सुने जाते है कि “बस एक मौका और मिल जाए तो फिर देखना इस बार तो में अपना फलां काम कर ही लूँगा” | ये वो लोग होते है जो आये हुए अवसर का लाभ लेने के लिए अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग किसी कारण वश नही कर पाए |हाँ इन लोगों में अवसर पहचानने की योग्यता तो अवश्य होती है | एक कहानी कुछ दिनों पहले पढ़ी थी की किसी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करे के बाद जब शिष्य लौटने लगा तो गुरुजी ने एक अंतिम परीक्षा का आयोजन किया | गुरु ने शिष्य को एक खेत में खड़ा कर दिया और शिष्य को कहा कि में यहाँ से तीन बैल छोडूंगा और तुम्हे उन बैलों की पूंछ पकड़नी है देखते है तुम कौन सा बैल पकड़ पाते हो |यह सुनकर शिष्य तैयार हो गया ….
गुरुजीने पहला बैल छोड़ा बैल बहूत हष्ट-पुष्ट और ताकतवर था उसे तेज गति से आता देख शिष्य घबराकर उसके रास्ते से दूर हट गया उसने मन ही मन सोचा की अभी तो दो बैल आना और बाकी है उनमे से पकड़ लूँगा ताकतवर बैल चला गया|
गुरूजी ने दूसरा बैल छोड़ा वो बैल पहले बैल की अपेक्षा थोडा कमजोर था| लेकिन उसके सिंग बहुत नुकीले थे| शिष्य को भय लगा और घबरा कर उसने उस बैल को भी निकल जाने दिया | अब शिष्य के पास केवल एक अवसर बाकी था|
गुरूजी ने तीसरा बैल उसकी और छोड़ा ये बैल बहुत कमजोर और बीमार था धीरे-धीरे चलकर बैल शिष्य तक पहुंचा जैसे ही शिष्य ने बैल की पूंछ पकडनी चाही तो शिष्य ने देखा कि उस बैल की तो पूंछ ही नही थी|
तब गुरूजी ने शिष्य से कहा कि मैंने तुम्हारी और तीन बैल भेजे लेकिन तुमने पूरी हिम्मत के साथ उनको रोकने का प्रयत्न नही किया और जब तुमने रोकने का प्रयत्न किया तो उसका कोई लाभ नही हो सका | कहानी का सार ये है कि
व्यक्ति द्वारा अर्जित की गयी कोई भी शिक्षा हो वो सार्थक तब होती ही है| जब व्यक्ति जीवन में आने वाले प्रत्येक अवसर को अन्तिम अवसर मानकर पूरे आत्मविश्वास के साथ उस अवसर का लाभ उठाने का प्रयत्न करता है, क्योंकि अवसर निकल जाने के बाद कितनी भी अच्छी शिक्षा अर्जित कीगयी हो हम उसका भरपूर लाभ नही उठा सकते | अत: हमे अवसरों के प्रति हमेशा सजग रहना चाहिए |
— पंकज ‘प्रखर’, कोटा(राज.)