भास्कर
सुबह सुबह
काले नीले बादलों के बीच
पूर्वोत्तर के कोने में
क्षितिज को चीरते हुए,
ठन्डी बयारो के बीच
घुलते मिलते,
स्वर्णिम रोशनी की
चादर फैलाते हुए,
खुशी का अम्बार लिए
प्राणियों के
मन को हर्षित करते हुए
मन भावन दृश्य
का माहौल बनाते हुए
सौन्दर्य का प्रतिक बनकर
धीरे धीरे पूर्णता की ओर
बढते हुए
अपने आकार को धारण कर
वनस्पतियों के साथ
सभी जीव जंतुओं के
मुस्कान को सदा बरकरार
बनाये रखने के लिए
दिव्य ज्योति से
सबको प्रकाशमय कर
कल्याण मयी
दुनिया का निर्माण हेतु
भास्कर का,
उदय हो रहा है।
— रमेश कुमार सिंह