ग़ज़ल
थी जान जब तक वो लडे फिर जाँ लुटाकर चल दिये
इस देश की खातिर वे खुद को भी मिटा कर चल दिये|
लड़ते गए सब वीरता से टैंकरों के सामने
झुकने दिया ना देश को खुद शिर कटा कर चले दिए |
परिवार को कर देश पर कुर्बान खुद लड़ने गए
वो वीर थे जो देश की इज्जत बचाकर चल दिये |
एकेक ने मारा कई को फिर शहीदों से मिले
अंतिम घडी तक फर्ज अपना सब निभा कर चल दिए |
शत शत नमन उन वीरों को जो मर मिटे हम वास्ते
खुद ही कटा कर शिर दिए फिर मुस्कुराकर चल दिए |
© कालीपद ‘प्रसाद’