गज़ल
किस्सा-ए-गम को ज़माने से छुपाते रहिए
जिगर ज़ख्मी हो कितना भी मुस्कुराते रहिए
किस मोड़ पर ना जाने कौन काम आए
यहां हर अजनबी से हाथ मिलाते रहिए
रुकना मौत है चलना ही जिंदगी अपनी
खुद भी चलिए औरों को भी चलाते रहिए
बाँटने से और भी बढ़ेगी ये दौलत
उदास लोगों को थोड़ा सा हंसाते रहिए
पहुंच जाएगी हाकिम के बहरे कानों तक
बुलंद लहजे में आवाज़ उठाते रहिए
वक्त आएगा अच्छा कभी हमारा भी
दिल में उम्मीद के चिराग जलाते रहिए
— भरत मल्होत्रा