लघुकथा – बेचारगी
“एक तो बेटी उपर से एक किडनी नही, साला किस्मत ही खराब है, पता नही आगे क्या क्या दिन दिखायेगी ये, सारी उम्र कमा-कमाकर इसका इलाज करवाने में ही न निकल जाये, इससे तो पैदा होते ही मर जाती.”
“पापा आप दी को क्यो कोसते रहते हो.”.. बेटे ने अपने पिता को बड़बड़ाते देखा तो बोला…. “दी को कुछ नहीं हुआ मामूली इन्फेक्शन है किडनी में, मैं अभी-अभी डाक्टर से बात करके आ रहा हूँ”
“पापा मुझे आपसे बात करनी है.”
“क्या? “
“आप जो भी पैसा मेरी शादी और इलाज के लिये सेव कर रहे हैं वो मुझे अपनी पढाई के लिये चाहिये. मे मेडिकल इन्टरेंस की तैयारी करने के लिए जाना चाहती हूँ.” बहुत समझाने पर पिता माने दीया की बात.
एक के बाद सफलता को छूती हुई दीया किडनी स्पेशलिस्ट बन चुकी थी.
समय किसी ने नहीं देखा, आज पिता को पता चला कि उसकी दोनो किडनी खराब हो चुकी है. दीया अपना पैसा और अपना समय पूरे तन्मयता से पिता की देखभाल में लगा कर पिता का कर्ज उतार रही थी. और पिता को रह रह कर याद आ रही थी बो बात पता नही आगे क्या क्या दिन दिखायेगी ये, नही पता था कि इस दिन को संवारने के लिए भगवान ने अपने रूप मे बेटी को भेजा है।
— रजनी विलगैयां