संस्मरण

मेरी कहानी 176

रात के वक्त हम क्रूज़ बोट में से विंटर पैलेस होटल में आ गए थे। होटल कोई ज़्यादा दूर नहीं था और इस के सामने ही दरिया नील था, दरअसल हमारी क्रूज़ बोट दरिया की कुछ दूरी पर थी। होटल की बिल्डिंग देख कर ही हम हैरान हो गए। इतना बड़ा क्लोनिअल होटल कि देख कर पता चल गिया कि उस वक्त अंग्रेजों की शानोशौकत कैसी थी। पहले हम रिसेप्शन की ओर ही गए। यह काफी बड़ा हाल था, जिस की एक तरफ बियर बार थी, सामने ही काउंटर था, जिस पर एक स्मार्ट यूनिफार्म पहने हुए एक इजिप्शियन खड़ा था। हमारा सामान होटल के सर्वेन्ट पहले ही ले गए थे और हमारे कमरे में रख दिया गया था, जो चौथी मंज़िल पर था। उस इज्प्शिन ने हमें बॉक्स नंबर दिए और हम ने अपने पासपोर्ट, टिकटें और कुछ जरूरी कागज़ात बॉक्स में रख दिए। उस ने सब चीज़ें बॉक्स में रख कर बॉक्स बन्द कर दिया और हमें बॉक्स की चाबी और कमरे की चाबी दे दी। फिर वोह हमें डाइनिंग हाल दिखाने ले गया जो बहुत ही बड़ा था। इस डाइनिंग हाल में रोज़ाना हम ने ब्रेकफास्ट लेना था। इस होटल में सिर्फ बैड ऐंड ब्रेकफास्ट ही हम को मिलना था, जो हमारी हॉलिडे पॅकेज में था। दुपहर और रात को हम किसी भी होटल में जा कर खाना ले सकते थे। हम चाहें, इस होटल में भी खाना खा सकते थे, यह हमारी मर्ज़ी ही थी लेकिन इस के पैसे हम को कैश देने थे, सिर्फ ब्रेकफास्ट ही फ्री था। जसवंत बोला, ” मामा ! पहले रूम देख लें, फिर नीचे आएंगे “, एक सर्वेन्ट हमारे साथ हो लिया और हम लिफ्ट के पास खड़े हो गए। लिफ्ट आई तो हम बैठ कर चौथी मंज़िल पर आ गए। कॉरिडोर में जाते जाते हमारा कमरा आ गया। रूम खोल कर हम अंदर गए, वोह सर्वेन्ट उसी वक्त चला गया। हमारे सूटकेस पहले ही वहां पड़े थे। रूम देख कर रूह खुश हो गई। क्रूज़ बोट के रूम से यह रूम चार गुणा बड़ा होगा और बैड भी बहुत बड़ी थी, जिस पर बैड शीट को खूबसूरत डिज़ाइन बना के बिछाया हुआ था और बैड के मध्य में दो बड़े बड़े चॉकलेट रखे हुए थे और सारी बैड पर गुलाब के फूलों की कुछ पँखड़ीआं बिखरी हुई थीं और कमरे में से सैंट की खुशबू आ रही थी। अपने कपडे वार्डरोब में सज़ा कर हम नीचे आ गए। वहां थॉमसन हॉलिडे वालों का रिप्रीजिंटेटिव बैठा था और हमारी क्रूज़ बोट के ही कुछ गोरे उस से बातें कर रहे थे। हम भी एक सोफे पे बैठ गए। इस रीप्रिजेंटेटिव ने हम सब को एक एक कार्ड दिया। इस पर उस का मोबाइल नंबर था जो किसी एमरजेंसी के वक्त हम इस्तेमाल कर सकते थे क्योंकि हमारी सेफ्टी की ज़िमेदारी थॉमसन हौलिडे वालों की थी। कहीं कोई ऐक्सीडैंट हो जाए, बीमार हो जाए या कोई आतंकवादी हमला हो जाए, इस मोबाइल नंबर पे हम ने उस को कांटैक्ट करना था। उस समय भी एक आतंकवादी हमला हुआ था जो हमारे आने से पहले हुआ था, इसी लिए एक दो दफा हमारे साथ पुलिस की गाड़ी भी गई थी।
उस रीप्रेज़ेन्टेटिव, जो कोई होगा पैंतीस वर्ष का, उस ने कुछ कुछ इस होटल का इतिहास बताया जो ज़्यादा तो याद नहीं लेकिन कुछ कुछ याद है। यह होटल 1907 में इंगलैंड की शिपिंग कंपनी थॉमस कुक ने किसी और बिज़नैस मैंन के साथ मिल कर बनाया था। जिस दिन इस होटल का उदघाटन होना था, पहले वैली ऑफ दी किंग्ज़ में एक पिकनिक पार्टी की गई थी और फिर बाद में इस होटल में आ कर डिनर पार्टी हुईं थी, जिस में बड़े बड़े लोगों ने स्पीचें दी थीं जिन में हावर्ड कार्टर भी था। हावर्ड कार्टर उस वक्त वैली ऑफ दी किंग्ज़ में पुरातन टूम्ब ढूंढने में लगा हुआ था। जो जो भी काम उस वक्त वोह कर रहा था, उस की अप्पडेट इसी होटल में एक नोटिस बोर्ड पर लिखा करता था, जिस को पढ़ कर न्यूज़ रिपोर्टर डे टू डे ख़बरें अपनी अपनी पतार्काओं को भेजा करते थे। इसी होटल में बैजियम के राजा रानी रहने आते थे। जब 1922 में हावर्ड कार्टर ने TOOTANKHAMAN की ममी को ढून्ढ लिया था, तो इस होटल में दुनिआं भर के रिपोर्टर आया करते थे।
मैं और जसवंत उठ कर होटल का जाएज़ा लेने के लिए उठ खड़े हुए। एक बहुत ही बड़े कॉरीडोर की ओर चल दिए। दोनों तरफ के कमरों को देखते जा रहे थे जो काफी बड़े दिखाई दे रहे थे और कुछ एक के दरवाज़े खुल्ले हुए थे, जिन में गोरे बैठे खा पी रहे थे। एक कमरे के पास आ कर हम खड़े हो गए और शीशों में से कमरे की ओर झाँकने लगे जो इतना सुन्दर था कि बहुत देर तक यहां हम खड़े रहे। इस कमरे में बहुत ही एक्सपेंसिव फर्नीचर और बड़ी बैड पडी थी। एक गोरा गोरी हमारे पास आ के खड़े हो गए और हमें बताया कि इस कमरे में बैल्जियम के किंग और कुईन रहा करते थे और अब किसे ने इस कमरे में रात गुज़ारनी हो तो, एक रात के पांच सौ पाउंड थे। कुछ देर बातें करते हम सब हंसते रहे और आगे जाने लगे। आखर में यह कारीडोर बन्द हो जाता था और आखर में आगे बड़ा कमरा था। यहां इन्फर्मेशन के लिए काफी कुछ था और यहां से ही जसवंत ने अपने बेटे को टेलीफोन किया और तीन मिनट के ही दस पाउंड ले लिये गए। उस वक्त इजिप्ट से टेलीफोन करना बहुत महंगा था। अब हम वापस आ गए और डाइनिंग हाल में से जाते हुए, एक और जगह आ गए, यहां एक पार्क थी। तरह तरह की लाइटें लगी थीं और कुछ गोरे बैठे ड्रिंक पी रहे थे और ऊंची ऊंची हंस रहे थे। कुछ देर के लिए हम होटल के गेट से बाहर निकल कर सड़क की आवज़ाई देखते रहे और अपने कमरे की ओर चल दिए क्योंकि रात काफी हो चुक्की थी और जाते ही सो गए।
सुबह उठे। नहा कर कपडे पहने और नीचे डाइनिंग हाल में आ गए, यहां पहले ही गोरे गोरीआं बैठे ब्रेकफास्ट का मज़ा ले रहे थे। खाने इतने प्रकार के थे कि लिखना ही मुश्किल है क्योंकि यह पाइव स्टार होटल था। पहले टेबल पर जुईस ही इतनी किसम का था कि फैसला लेना ही मुश्किल था कि क्या लें। तरह तरह के सीरियल थे जो सभी लगता था कि इंगलैंड फ्रांस से ही आये हों। प्लेटें यहां भी काफी बड़ी थीं। मीट की बनी चीज़ें बहुत थीं, जिन के हम दोनों शौक़ीन थे। यहां भी एक इज्प्शिन एग्ग फ्राई कर रहा था और उस के सामने बहुत से मसाले और कई किसम की मिर्चें रखी हुई थीं। कुछ साबत मिर्चें भी थीं जो बहुत ही छोटी छोटी थीं। हम ने उस शख्स से पूछ लिया कि यह मिर्चें ज़्यादा तीखी तो नहीं थीं। उस ने बता दिया कि यह काली मिर्च जैसी ही थीं। उस वक्त मैं मिर्च काफी खा जाता था, सो मैंने पांच छै मिर्चें हाथ से ही मसल कर उस के कप्प में डाल लीं। वोह इजिप्शियन देख कर हंस पड़ा। खैर, उस ने अंडे फैंट कर आमलेट बना कर प्लेट में रख दिया। जब प्लेटें भर गई तो हम अपने टेबल पर आ कर खाने लगे। अंडा ही पहले शुरू किया ताकि मिर्च का पता चल सके लेकिन यह मिर्च इतनी कड़वी नहीं थी बल्कि स्वादिष्ट थी। पेट पूजा के बाद हम होटल के बाहर आ गए। अब हम फ्री थे और एक हफ्ता, यहां भी हम ने जाना हो, हमारी मर्ज़ी थी। सारा दिन हम लुक्सर में घुमते रहे। फिर आज रात को हम ने कारनैक टैम्पल में साइट ऐंड साउंड शो देखने का प्लैन बना लिया।
बोर होने का हमारे पास वक्त ही नहीं था। जब चाहें हम बाहर खा पी लेते। जब कुछ अँधेरा हुआ तो रात के खाने के लिए हम ने दूर दूर तक चक्कर लगाया। गोरे डांसिंग बार में जा रहे थे लेकिन हमें इस में कोई दिलचस्पी नहीं थी। जगह जगह ओपन एअर बार थीं, जिन में बीअर या मीट मछली और डिनर भी ले सकते थे। गेट पर मैनिऊ की कीमतें लिखी हुई थीं। हम पढ़ ही रहे थे कि इस होटल का मालक लड़का बाहर आ गिया और हम से बातें करने लगा। ज़ाहिर था, वोह हमें अन्दर आने के लिए अपनी सर्व्सिस्ज़ बताये जा रहा था। एक खुल्ले आँगन में कुर्सीआं मेज़ रखे हुए थे। कोई छत नहीं थी। ऐसे लगता था जैसे यह कोई पंजाबी ढाबा हो। रंग बिरंगी रौशनी से वातावरण अच्छा लग रहा था लेकिन ग्राहक वहां कोई नहीं था, शायद यह दिन ऑफ सीज़न होंगे। हम ने दो दो बोतलें स्टैला की पीं और साथ में मछली की प्लेटों का भी आर्डर दे दिया। याद नहीं कितनी देर हम यहां बैठे रहे और फिर हम गलियों में छोटे छोटे होटलों को देखने लगे। हर होटल में चार चार पांच पांच लोग ही बैठे होते थे। एक छोटे से होटल के बाहर हम उन के मैन्यू को पड़ने लगे। एक इजिप्शियन बाहर निकल आया और हम को एक मसाले का कैन दिखाने लगा, जिस पर लिखा हुआ था ” राजा मसाला ” शायद वोह जान गया होगा कि हम इंडियन हैं, यह मसाला इंग्लैंड का बना हुआ था जो हम यहां अक्सर इस्तेमाल करते ही रहते हैं। फिर वोह हमें बताने लगा कि वोह हमें चिकन करी ऐंड राइस बना कर खिलायेगा। कल आने का वादा करके हम वहां से रुखसत हो गए और किसी को पूछने लगे कि कारनैक टैम्पल को जाने के लिए ट्रांसपोर्ट कहाँ से मिलेगी। उस से पता करके हम वहां जा पहुंचे यहां से टाँगे मिलते थे। एक जगह कोई बीस पचीस टाँगे खड़े थे। किसी किसी के घोड़े चारा खा रहे थे। एक टाँगे वाले से बीस इजिप्शियन पाउंड पर तांगा ले कर उस में बैठ गए और कारनैक टैम्पल की ओर चलने लगे। जो रास्ता इस इजिप्शियन ने अख्तियार किया वोह लुक्सर के बाहर बाहर से हो कर जाता था, शायद इस रास्ते से जाना नज़दीक होगा।
जैसे जैसे हम बाहर जा रहे थे, रास्ता बुरा तो नहीं था लेकिन रास्ता कच्चा था और एक छोटी सी नहर के साथ साथ जा रहा था, जिस के दोनों तरफ छोटे छोटे बृक्ष थे। एक ओर यह रास्ता था और नहर की दुसरी ओर गरीबों की बस्ती दिखाई दे रही थी। कुछ बच्चे हमारे टाँगे के पीछे पढ़ गए। अँधेरा होने के बावजूद वोह यहां घूम रहे थे,ज़ाहिर था वोह हम से कोई आशा लगाए हुए थे। हमारे पास उन को देने के लिए कोई ख़ास चीज़ तो नहीं थी लेकिन जसवंत के पास पांच छै सस्ते सस्ते बायरो पैन थे। जसवंत ने वोह पैन उन की ओर फैंक दिए, वोह आपस में छीना झपटी करने लगे और हम आगे बढ़ गए। याद नहीं कब कारनैक टैम्पल पहुंचे लेकिन हम से पहले चार पांच सौ लोग पहले ही दिखाई दे रहे थे और लाइन में खड़े टिकट ले रहे थे। चार या पांच पाउंड टिकट था और जसवंत ने दो टिकट ले लिए और आगे बढ़ने लगे। आगे बहुत खुली जगह थी और वोह ही भेड़ियों जैसे बुत्त दोनों तरफ दिखाई दे रहे थे जो हम ने उस दिन देखे हुए थे । यहां दोनों तरफ नीचे दीवार के साथ साथ लाइटें थीं लेक्न जैसे ही हम टैम्पल के भीतर जाने लगे, लाइटिंग इतनी अछि नहीं थी और अँधेरा ही अँधेरा था। टैम्पल की कोई चीज़ भी हमें अछि तरह दिखाई नहीं दे रही थी और लोग ऐसे ही चले जा रहे थे। काफी दूर तक हमें जाना पड़ा था और फिर एक ऐसी जगह आ गए, यहां एक बड़ा सा तालाब था जो पुरातन समय का ही बना हुआ था और इस में पानी भी था। एक तरफ सिनिमा हाल की तरह सीड़ीयों की तरह ऊपर नीचे,और नीचे, उस पर बैठने के लिए बहुत सी कुर्सियाँ रखी हुई थीं। मालुम होता था, उस समय भी यहां बैठ कर राजे महाराजे कोई शो देखते होंगे। अँधेरा काफी हो चुक्का था।
अब जोर जोर से मयूजिक शुरू हो गया और तरह तरह की लाइटें आने लगीं। सीन ऐसा था जैसे बादशाह का दरबार हो और उस के दरबारी बादशाह को झुक झुक कर सलाम कर रहे हों। यह सब अमेरिकन इंग्लिश में बोला जा रहा था और बार बार YOUR MAJESTY शब्द बोला जा रहा था। यह शो कोई आधे घंटे का था लेकिन मुझे कोई ख़ास दिलचस्प नहीं लगा और इसी लिये ही शायद मुझ को ज़्यादा याद भी नहीं है कि सीन किया किया थे। इस के बाद सभी वापस चल पड़े। यह शो हफ्ते में दो दिन इंग्लिश, दो दिन फ्रैंच, दो दिन जर्मन भाषा में होता था और सिर्फ एक दिन ही इजिप्शियन भाषा में होता था। दस मिनट में हम बाहर आ गए और टाँगे वालों से मोल भाव करने लगे और एक टाँगे में बैठ कर होटल की तरफ चल दिए। जब होटल के भीतर लाउंज में पहुंचे तो कुछ गोरे सोफों पर बैठे बातें कर रहे थे। हम भी उन की गुफ्तगू में शामल हो गए और लुक्सर में देखने की और कौन कौन सी जगह थी, जान्ने के लिए उन से पूछ ताश करने लगे। बातों बातों में पता चला कि लुक्सर में बहुत बड़ा एक मयूज़ियम है जो देखने लायक है। वहां बैठे बैठे ही हम ने फैसला कर लिया कि कल को मयूज़ियम देखने चलेंगे। एक बात और भी पता चली कि यहां का सन सैट यानी डूबता हुआ सूर्य भी देखने वाला है। इतने दिन हम को यहां आये हो गए थे लेकिन हम को पता ही नहीं था, इसी लिए हम ने कभी गौर ही नहीं किया था।
इस होटल विंटर पैलेस में ही और भी कई छोटे छोटे रैस्टोरैंट थे। चार या पांच गोरे और उन की पत्नियों के साथ हम एक रैस्टोरैंट में बैठ गए। स्मार्टली ड्रैस्ड युवा लड़के ड्रिंक सर्व करने लगे। याद नहीं किया बातें हुईं लेकिन कोई दो घंटे के बाद खाना खा के हम अपने कमरों को चल दिए। कुछ देर मैं और जसवंत अपने कमरे में ताश खेलते रहे। हमारे कुछ कपडे गन्दे हो चुक्के थे, इस लिए लॉन्ड्री वाले को देने के लिए हम अपने बैग भरने लगे। बैग भरके हम ने ऊपर नोट रख दिए ताकि सुबह जो लड़कियां सफाई के लिए आती थीं वोह समझ लें। इन सफाई वाली लड़कियों के पास भी हमारे कमरे की चाबी होती थी लेकिन इस में डर की कोई बात नहीं होती थी। सुबह मयूज़ियम देखने का प्रोग्राम बना कर हम सो गए। एक बात लिखना भूल गया, इस होटल, जिस को SOFITEL WINTER PALACE कहते हैं, इंटनेट पे यह होटल देखा जा सकता है। चलता. . .. . . . .