गज़ल
किस्मत नहीं रही कभी फुर्सत नहीं रही,
दिल को मेरे खुशियों की आदत नहीं रही,
तुझसे ही बावस्ता थी मेरी हर इक उम्मीद,
कैसे कहूँ कि तुझसे शिकायत नहीं रही,
मंडी में मेरा कोई खरीददार ना मिला,
दुनिया को वफाओं की ज़रूरत नहीं रही,
कुछ लोग भी इस दौर के खुशामद पसंद हैं,
कुछ मुझमें भी सच कहने की हिम्मत नहीं रही,
ता-उम्र साथ रहने का वादा किए थे जो,
वो चल दिए जब उनको ज़रूरत नहीं रही,
किस बात का गुरूर तू करता है जब यहां,
कायम सिकंदरों की हुकूमत नहीं रही,
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।