कविता

दिवाली और पटाखे

दिये की रौशनी में अंधेरों को भागते देखा
अपनी खुशियों के लिए बचपन को रुलाते देखा।
दीवाली की खुशियां होती हैं सभी के लिए,
वही कुछ बच्चों को भूख से सिसकते देखा ।
दिए तो जलाये पर आस पास देखना भूल गए
चंद सिक्कों के लिए बचपन को भटकते देखा।
क्या होली क्या दिवाली माँ बाप के प्यार से महरूम
कुछ मासूम को अकेले मे बिलखते देखा ।
जल रहा था दिल मेरा देखकर जलते हुए पटाखों को
लगायी थी कल ही दुत्कार सिर्फ एक रोटी के लिए
आज उसी धनवान को नोटों को जलाते देखा ।
मनाकर तो देखो दिवाली को एक नए अंदाज में पाकर
कुछ नए उपहार मासूमों को मुस्कराते देखा ।
“दिये तो जलाओ पर इतना याद रहे
अँधेरा नहीं जाता सिर्फ दीये जलाने से ।
क्यों न इस दिवाली पर कुछ नया कर जाएँ
उठाकर एक अनौखी शपथ
न रहे धरा पर कोई भी भूखा हमारे आस पास
चलो मिलकर त्यौहार का सही मतलब बता जाएँ ।।”
देखो देखो आयी न चेहरे पर कुछ मुस्कराहट
आज सदियों बाद त्यौहार को समझते देखा ।।

वर्षा वार्ष्णेय, अलीगढ़

*वर्षा वार्ष्णेय

पति का नाम –श्री गणेश कुमार वार्ष्णेय शिक्षा –ग्रेजुएशन {साहित्यिक अंग्रेजी ,सामान्य अंग्रेजी ,अर्थशास्त्र ,मनोविज्ञान } पता –संगम बिहार कॉलोनी ,गली न .3 नगला तिकोना रोड अलीगढ़{उत्तर प्रदेश} फ़ोन न .. 8868881051, 8439939877 अन्य – समाचार पत्र और किताबों में सामाजिक कुरीतियों और ज्वलंत विषयों पर काव्य सृजन और लेख , पूर्व में अध्यापन कार्य, वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन यही है जिंदगी, कविता संग्रह की लेखिका नारी गौरव सम्मान से सम्मानित पुष्पगंधा काव्य संकलन के लिए रचनाकार के लिए सम्मानित {भारत की प्रतिभाशाली हिंदी कवयित्रियाँ }साझा संकलन पुष्पगंधा काव्य संकलन साझा संकलन संदल सुगंध साझा संकलन Pride of women award -2017 Indian trailblezer women Award 2017