बाल कविता : फुग्गा फूटा
दादी पहन पुराना लुग्गा
बेच रही है सुन्दर फुग्गा
कहती आओ मेरे बच्चे
नन्हें-मुन्ने दिल के सच्चे
केवल पाँच रुपैया लाना
फुग्गा कोई भी ले जाना
तभी दौड़ के रानी आयी
नीले फुग्गे को वह पायी
ख़ुशी-ख़ुशी में पैसा देकर
भागी झटपट फुग्गा लेकर
लगी खेलने घर के द्वारे
खेलों में सब अपना वारे
देख के चिंटू न रह पाया
दौड़-भागके फुग्गा लाया
खेल-खेल में फुग्गा फूटा
जैसे रानी का दिल टूटा
चिंटू खेल-खेल इठलाता
रानी को जी भर ललचाता
चिंटू का भी फुग्गा फूटा
बेचारा रानी से रूठा
बच्चों को अच्छा लगता है
फुग्गा अधिक नहीं चलता है
— योगेन्द्र प्रताप मौर्य